नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजेपयी की एक मशहूर कविता की पंक्तियां हैं, ‘हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा..’ और अगर इसे फिलहाल पिछले कुछ साल से घरेलू क्रिकेट में बल्ले से आग उगल रहे सरफराज खान (Sarfaraz Khan) से जोड़ दिया जाए, तो एक बार को बिल्कुल गलत नहीं ही होगा. वजह यह है कि सेलेक्टर्स बार-बार उनकी उनकी अदेखनी कर रहे हैं, लेकिन सरफराज (Sarfaraz Khan’s century) हार न मानते हुए खास अंदाज में किसी न किसी शतक से सेलेक्टरों को संदेश भेज रहे हैं. और एक बार फिर सरफराज ने वीरवार को एक ऐसा ही शतक जड़कर ऊपर लिखी पंक्तियों को चरित्रार्थ किया. अहमदाबाद में इंग्लैंड लॉयन्स और भारत ‘ए’ (England Lions vs India A) के बीच खेले जा रहे अनधिकृत चार दिनी टेस्ट के दूसरे दिन सरफराज ने 161 रन की पारी खेलकर बता दिया है कि उनका हौसला सेलेक्शन कमेटी की चली आ रही अनदेखी से बिल्कुल भी टस से मस नहीं हुआ है. और उनके बल्ले की आग की लपटों में वैसी ही तपिश है, जैसी पिछली करीब दो साल से घरेलू क्रिकेट में दिखी है.
पारी देखें, स्ट्राइक रेट भी देखें!
सरफराज ने इंग्लैंड लॉयन्स के खिलाफ दिखाया कि अगर उनके अंदर रनों के प्रति धधक रही आग को महसूस करना है, तो आप उनके रनों को तो देखें ही देखें, उनके स्ट्राइक-रेट पर भी गौर फरमा लें. सरफराज ने 161 रनों के लिए 160 गेंद खेलीं, 18 चौके जड़े और 5 छक्के लगाए. और स्ट्राइक-रेट रहा 100.62. खान और दूसरे शतकवीर देवदत्त के बीच स्ट्राइक-रेट का अंतर करीब 18 का रहा. और इसे आप रन बनाने की शैली के साथ-साथ हाल में हुए बर्ताव के बावजूद खिलाड़ी विशेष के भीतर धधक रही हार न मानने रूपी अग्नि के रूप में भी देख सकते हैं.
दक्षिण अफ्रीका में भी दिया था सेलेक्टरों को संदेश
पिछले दिनों जमीन दक्षिण अफ्रीका थी. हालांकि, अभ्यास मैच भारतीय खिलाड़ियों के बीच बांटकर बनाई गई दो टीमों के बीच ही था, लेकिन हेड कोच राहुल द्रविड़ के सामने सिर्फ 61 गेंदों के भीतर शतक जड़कर सरफराज ने तब भी मैसेज दिया था कि उनके भीतर न रनों की भूख कम होगी और न ही वह बल्ले पर जंग ही लगने देंगे. दक्षिण अफ्रीकी जमी पर सरफराज का यह अंदाज एक नया पहलू था. यह बहुत हद तक उनके भीतर ही भीतर पल रहा गुस्सा भी था, जिसे उन्होंने आतिशी शतक के जरिए दिखाया, लेकिन सेलेक्टरों ने इसके बावजूद इस बल्लेबाज को इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट टीम में चुनने के बजाय भारत “ए” के साथ ही व्यस्त रखना ज्यादा बेहतर समझा.
अब समझो हो ही गया!
इंग्लैंड लॉयन्स के खिलाफ 161 रन की पारी बहुत कुछ कहती है. मनोवैज्ञानिक रूप से कोई भी खिलाड़ी बार-बार टीम इंडिया के दरवाजे पर “जोरदार प्रहार” के बावजूद टीम में न चुने जाने से हतोत्साहित हो सकता है, निराशा उसके खेल पर असर डाल सकती है, उसकी फॉर्म की लय को तोड़ सकती है. यह सोचकर परेशानी और भी बढ़ सकती है कि विराट बाहर गए, तो उनकी जगह पाटीदार क्यों? वह खुद क्यों नहीं? शायद हो सकता है कि सेलेक्टरों ने पूरी तरह से मन बना लिया है कि वे जब भी सरफराज को बुलाएंगे, तो सीधे अंतिम ग्यारह में ही जगह देंगे, उन्हें बाहर नहीं बैठाएंगे क्योंकि इलेवन में चयन तो फिलहाल मुश्किल ही दिख रहा है, लेकिन सेलेक्टरों को यह भी अच्छी तरह समझना होगा कि किसी खिलाड़ी का हौसला बरकरार रखना, या उसे न डिगने देना भी एक बड़ी जिम्मेदारी है. वहीं, टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम में बाकी 15 खिलाड़ियों के साथ बैठने का उनका हक तो है ही. साथ ही, इससे उन्हें सीखने को भी बहुत ज्यादा मिलेगा. बहरहाल, तमाम बातों के बावजूद यह भी साफ है कि अब समझो हो ही गया! टीम इंडिया की जर्सी ज्यादा दूर नहीं है. बस सरफराज को हर बात, हर दर्द, हर पिच, हर मौसम को भूलकर शतक दर शतक “लिखते: रहना होगा. बिना डिगे, बिना विचलित हुए. और पूर्व प्रधानमंत्री की लिखी इन लाइनों को भी याद रखना होगा:
“व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता, मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं”