खुशखबरी! इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 7 जिलों के दारोगाओं को दी बड़ी राहत, सेवा में बहाली का निर्देश

Sanchar Now
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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेरठ, शाहजहांपुर, बरेली, फिरोजाबाद, गोरखपुर, अलीगढ़ एवं बलिया में तैनात दारोगाओं को राहत देते हुए उन्हें नौकरी से निकालने का आदेश रद्द कर दिया है. कोर्ट ने सभी दारोगाओं को सभी परिणामी लाभ सहित सेवा में उनकी बहाली का निर्देश दिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने गौरव कुमार, रोहित कुमार, सुधीर कुमार गुप्ता, निर्भय सिंह जादौन एवं ज्योति व अन्य दारोगाओं की याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं एडवोकेट अतिप्रिया गौतम और सरकारी वकील की दलीलों को सुनकर दिया. दारोगाओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं अधिवक्ता अतिप्रिया का कहना था कि याचियों को नौकरी से निकालने से पूर्व उप्र पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड ने न तो उनकी सेवा नियमावली का पालन किया और न ही कोई विभागीय जांच सम्पादित की थी.

मामले के तथ्यों के अनुसार उप्र पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड ने 9027 पुलिस उप-निरीक्षकों के पदों की भर्ती के लिए 24 फरवरी 2021 को विज्ञापन निकाला था. चयन प्रक्रिया में ऑनलाइन लिखित परीक्षा, अभिलेखों की संवीक्षा एवं शारीरिक मानक परीक्षा, शारीरिक दक्षता परीक्षा और चिकित्सा परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य था.

सभी याचियों का चयन पुलिस उपनिरीक्षक के पद पर सम्पूर्ण चयन प्रकिया में सफल घोषित होने के बाद माह फरवरी 2023 में हुआ था. उन्हें उपनिरीक्षक के पद पर फरवरी 2023 में नियुक्ति प्रदान की गई और मार्च 2023 में ट्रेनिंग पर भेजा गया. सभी याचियों ने प्रशिक्षण सफलता पूर्वक उत्तीर्ण किया. उसके बाद उन्हें दारोगा के पद पर मार्च 2024 में प्रदेश के विभिन्न जिलों में पोस्टिंग प्रदान की गई.

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उसके बाद उप्र पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड ने 27 अक्टूबर 2024 को इन सभी दारोगाओं का चयन निरस्त कर दिया और उन्हें सेवा से हटा दिया. भर्ती बोर्ड ने दारोगाओं के विरुद्ध आदेश में यह आरोप लगाया था कि याचियों ने चयन प्रकिया में लिखित परीक्षा के समय स्वयं परीक्षा नहीं दी. बल्कि उनके स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति ने परीक्षा दी थी.

कार्यदायी संस्था के पास उपलब्ध लिखित परीक्षा में सम्मिलित अभ्यर्थियों के छाप अंगुष्ठ से कराया गया तो दोनों हाथों के अंगुष्ठ छाप का मिलान नहीं हुआ. इस कारण इन सभी दारोगाओं को सेवा से हटा दिया गया. अधिवक्ता विजय गौतम ने बताया कि इसी चयन प्रक्रिया में अभिलेखों की संवीक्षा एवं शारीरिक मानक परीक्षा और शारीरिक दक्षता परीक्षा के समय सैकड़ों दारोगा के पद पर चयनित अभ्यर्थियों को भर्ती केन्द्र से ही एफआईआर दर्ज कराने के बाद गैर कानूनी तरीके से जेल भेज दिया गया था.

वरिष्ठ अधिवक्ता गौतम का कहना था कि उक्त आदेश से पूर्व उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम 14(1) के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया और याचियों पर जो आरोप लगाए गए हैं. उसके संबंध में कोई विभागीय जांच भी नहीं पूरी की गई. याचियों को सुनवाई का अवसर नहीं प्रदान किया गया और नियम एवं कानून के विरुद्ध उन्हें सेवा से हटा दिया गया.

हाईकोर्ट ने रणविजय सिंह बनाम भारत सरकार व अन्य और विजय पाल सिंह व अन्य बनाम भारत सरकार व अन्य में डिवीजन बेंच द्वारा प्रतिपादित विधि के सिद्धान्तों का हवाला देते हुए सेवा से हटाने के आदेश को गैर कानूनी करार दिया तथा दारोगाओं का चयन निरस्तीकरण आदेश एवं सेवा से हटाने के आदेश 27 अक्टूबर 2024 को रद्द कर दिया. कोर्ट ने बोर्ड को यह छूट दी है कि नए सिरे से नियम एवं कानून के तहत आदेश कर सकते है.

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