संचार नाउ। ग्रेटर नोएडा शहर की सड़कें स्मार्ट सिटी के सपने बुन रही हैं, लेकिन जनता को पीने का साफ पानी तक नसीब नहीं हो रहा। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा पीपीपी मॉडल पर लगाए गए वाटर स्टैंड—जिन्हें स्थानीय लोग ‘पानी के बूथ’ कहते हैं—अब खुद बीमारियों का स्रोत बनते जा रहे हैं। इन पानी के बूथों पर न तो पानी पीने की सही व्यवस्था है और न ही इनकी साफ-सफाई व देखभाल की जा रही है हालांकि बूथों पर विज्ञापन अब भी चमक रहे हैं।
दरअसल, नॉलेज पार्क, परी चौक, जगत फार्म समेत कई स्थानों पर इन वाटर स्टेशनों की हालत बेहद खराब है। कहीं टोटियाँ टूटी पड़ी हैं, तो कहीं पानी की सप्लाई ठप है। जिन बूथों के अंदर पानी स्टोर करने की व्यवस्था है, उनके शटर पर लगे तालों पर महीनों की धूल और जंग जमी हुई है। यह साफ संकेत है कि इनका मेंटेनेंस लंबे समय से नहीं हुआ।
ग्रेटर नोएडा में बने इन वाटर स्टेशनों की देखभाल और खर्च की जिम्मेदारी विज्ञापन लगाने वाली निजी कंपनियों की है, लेकिन न प्राधिकरण निगरानी कर रहा है और न ही कंपनियाँ जिम्मेदारी निभा रही हैं। इन स्टेशनों पर लगे विज्ञापन अब भी चमकते दिखते हैं, पर अंदर का पानी किस हालत में है—कोई नहीं जानता।
बीते दिनों ग्रेटर नोएडा वेस्ट की कई सोसाइटियों में गंदा पानी पीने से सैकड़ों लोग बीमार हो गए थे। ऐसे में सार्वजनिक स्थानों पर लगे इन वाटर स्टेशनों की अनदेखी एक बड़ी लापरवाही साबित हो सकती है। यहाँ से रोजाना सैकड़ों राहगीर, छात्र और मजदूर पानी पीते हैं। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों की लापरवाही के चलते पानी के बूथ बीमारियों के बूथ बन गए हैं, तो इसके लिए सीधे तौर पर प्राधिकरण जिम्मेदार है।
वॉटर बूथ बनाने वाली कंपनी की तय हो जिम्मेदारी
इन बूथों के पानी की गुणवत्ता की तुरंत जांच कराई जाए और सभी वाटर स्टेशनों की मरम्मत और सफाई कराई जाए। इसके साथ ही पीने के पानी की नियमित निगरानी हो ताकि लोगो की पीने के लिए शुद्ध पानी मिल सके। इसके साथ ही पीपीपी मॉडल की कंपनियों की जवाबदेही तय की जाए। क्योकि जब बात लोगो के स्वास्थ्य की हो, तो चुप रहना खतरनाक हो सकता है। उम्मीद है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण इस मामले को गंभीरता से लेगा। वहीं ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी अभिषेक पाठक का कहना है कि संबंधित पानी के बूथों की देखभाल विज्ञापन लगाने वाली एजेंसी की जिम्मेदारी है। इस बूथों की जल्द ही जांच कराई जाएगी।