संचार नाउ। यमुना प्राधिकरण ने क्षेत्र में विकास कार्यों की गति बढ़ाने और भूमि विवादों को समाप्त करने के उद्देश्य से 18 गांवों की 441 हेक्टेयर भूमि का दाखिल-खारिज अपने नाम पर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस भूमि पर अब तक 3695 किसानों के नाम दर्ज थे, जिन्हें अब प्राधिकरण के नाम से बदलने की कार्रवाई चल रही है। किसानों की यह भूमि यमुना प्राधिकरण के द्वारा पहले ही अधिग्रहित की जा चुकी थी। किसानों को मुआवजा और आबादी भूखंडों का आवंटन भी कर दिया गया था, लेकिन राजस्व रिकॉर्ड में जमीन अभी तक किसानों के नाम पर दर्ज थी। इस स्थिति के कारण कई स्थानों पर किसानों द्वारा जमीन की खरीद-फरोख्त, लोन और खेतीबाड़ी जैसी शिकायतें मिलने लगी थीं।

दरअसल, यमुना प्राधिकरण के द्वारा आने वाले महीनों में अन्य अधिग्रहित गांवों की भूमि का भी दाखिल-खारिज किया जाएगा ताकि आगे चलकर किसी तरह का कानूनी विवाद या दोहरी मालिकाना स्थिति उत्पन्न न हो। यमुना प्राधिकरण ने 441 हेक्टेयर भूमि को अपने नाम दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू कर ग्रेटर नोएडा के विकास की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। इससे जहां भूमि विवादों पर रोक लगेगी, वहीं परियोजनाओं के क्रियान्वयन में भी रफ्तार आएगी।
यमुना प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी आर.के. सिंह ने बताया कि शहर को व्यवस्थित रूप से विकसित करने के लिए भूमि का दाखिल-खारिज आवश्यक था। कई वर्षों से अधिग्रहित भूमि अब भी किसानों के नाम पर दर्ज थी, जिससे भविष्य में विवाद की स्थिति बन सकती थी। इसलिए अब चरणबद्ध तरीके से भूमि को प्राधिकरण के नाम पर दर्ज किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि 18 गांवों की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और अगले चरण में शेष अधिग्रहित भूमि का दाखिल-खारिज किया जाएगा।
भूमि विवादों पर लगेगा विराम
यीडा के सीईओ ने बताया कि इस कार्रवाई के बाद भूमि को लेकर होने वाले विवादों पर रोक लगेगी। अब प्राधिकरण अपने अधीन भूमि पर आवासीय, औद्योगिक और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को तेजी से विकसित कर सकेगा। वही दाखिल-खारिज की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब किसी भी व्यक्ति द्वारा अधिग्रहित भूमि पर कृषि, बुवाई या लोन लेने जैसी गतिविधियों की शिकायतें नहीं मिलेंगी। इससे प्रशासनिक नियंत्रण मजबूत होगा और भूमि उपयोग स्पष्ट रहेगा।












