नोएडा की एक महिला के खिलाफ कोर्ट ने झूठी गवाही देने पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। गौतमबुद्धनगर जिले की एडिशनल सेशंस और फास्ट-ट्रैक कोर्ट ने साल 2020 के दुष्कर्म के एक झूठे मामले में आरोपी को बरी कर दिया। इस मामले में आरोपी पर आईपीसी की धारा 376 और 506 के तहत केस दर्ज था। कोर्ट ने आरोपी को बरी करने के साथ ही शिकायतकर्ता महिला के खिलाफ केस दर्ज करने का आदेश दिया, जिसने कोर्ट में झूठी गवाही दी थी।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई 2020 में महिला ने सुभाष, उसके भाई राजेंद्र और उसकी बहन उधा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। महिला ने आरोप लगाया कि आरोपी सुभाष ने उसका अपहरण कर बंदूक की नोक पर जबरन शादी करने के लिए मजबूर किया। इसके अलावा महिला ने सुभाष पर बलात्कार का भी आरोप लगाया था।
2020 में गिरफ्तार हुआ था सुभाष
पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू की, तो उसमें आरोपी सुभाष की बहन और उसके भाई की कोई संलिप्तता नहीं पाई गई। ऐसे में पुलिस ने सिर्फ सुभाष के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और 506 के तहत चार्जशीट दाखिल की। इस मामले में आरोपी सुभाष को 4 अगस्त 2020 को गिरफ्तार कर लिया गया था। महिला ने यह भी आरोप लगाया था कि उसे गर्भपात कराने के लिए भी मजबूर किया गया था और दवा भी खिलाई गई थी।
यह मामला फास्ट ट्रैक कोर्ट में पहुंचा, तो पीड़ित महिला ने अपना बयान बदल लिया। उसने शिकायत में लगाए गए सभी आरोपों को वापस ले लिया। जानकारी के मुताबिक उन तीनों के खिलाफ 22 जुलाई 2020 को आईपीसी की धारा 313,366,376डी, 452 और 505 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
पीड़ित महिला ने बताया कि उसके पति ने उसे प्रताड़ित किया था, जिसके वजह से वह अपने बच्चों को लेकर खुद की मर्जी से सुभाष के पास चली गई थी। महिला ने बताया कि जब वो वापस लौटी तो उसके पति ने एक शिकायत लिखी और उस पर अंगूठा लगवा लिया। इस शिकायत को पुलिस थाने में दे दिया गया, जिससे सुभाष पर झूठा मुकदमा दर्ज कराया जा सके।
पति के दबाव में कराई शिकायत
महिला के अनुसार, उसने अपने पति और पुलिस के दबाव में आकर सुभाष के खिलाफ बयान दर्ज कराया था। इसके साथ ही उसने उधा देवी और राजेंद्र से मिलने और बलात्कार किए जाने की बात से भी इनकार कर दिया। इतना ही नहीं, प्रॉसिक्यूशन के एक गवाह ने भी पीड़ित के बारे में कोई जानकारी होने से इनकार कर दिया।
पीड़िता ने जिलाधिकारी के सामने दिए गए बयान को आधार बनाने की कोशिश की। वहीं कोर्ट ने इन दलीलों को मानने से इनकार कर दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया।