उत्पन्ना एकादशी व्रत मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस दिन उपवास, प्रभु नामस्मरण और रात्रि जागरण करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। चलिए पढ़ते हैं आज का पंचांग।

आज का पंचांग (Panchang 15 November 2025)
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त – देर रात 2 बजकर 37 मिनट तक (16 नवंबर)
विष्कंभ योग – पूरे दिन
करण –
बव – दोपहर 1 बजकर 40 मिनट तक
बालव – देर रात 2 बजकर 37 मिनट तक (16 नवंबर)
वार – शनिवार
सूर्योदय और सूर्यास्त का समय
सूर्योदय – सुबह 6 बजकर 44 मिनट से
सूर्यास्त – शाम 5 बजकर 27 मिनट पर
चंद्रोदय का समय – ब्रह्म मुहूर्त 3 बजकर 8 मिनट पर (16 नवंबर)
चन्द्रास्त का समय – दोपहर 2 बजकर 37 मिनट पर
सूर्य राशि – तुला
चंद्र राशि – कन्या
आज के शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11 बजकर 44 मिनट से दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक
अमृत काल – दोपहर 3 बजकर 42 मिनट से शाम 5 बजकर 27 मिनट तक
आज का अशुभ समय
राहुकाल – सुबह 9 बजकर 25 मिनट से सुबह 10 बजकर 45 मिनट तक
गुलिक काल – सुबह 6 बजकर 44 मिनट से सुबह 8 बजकर 4 मिनट तक
यमगण्ड – दोपहर 1 बजकर 26 मिनट से दोपहर 2 बजकर 46 मिनट तक
आज का नक्षत्र
आज चंद्रदेव उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में रहेंगे।
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र: रात 11 बजकर 34 मिनट तक
सामान्य विशेषताएं: विनम्रता, मेहनती स्वभाव, बुद्धिमत्ता, मददगार, उदार, ईमानदारी, बुद्धिमान, अध्ययनशील और परिश्रमी
नक्षत्र स्वामी: सूर्य देव
राशि स्वामी: सूर्य देव, बुध देव
देवता: आर्यमन (मित्रता के देवता)
गुण: राजस
प्रतीक: बिस्तर
आज का व्रत-त्योहार – उत्पन्ना एकादशी व्रत
पुराणों के अनुसार, मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी पर एकादशी देवी का प्राकट्य हुआ था, जिन्होंने असुर मूढ़ का संहार कर धर्म की रक्षा की थी। इसलिए इस तिथि को “उत्पन्ना” अर्थात् “प्रकट होने वाली” एकादशी कहा गया है।
इस दिन श्रद्धालु प्रातःकाल स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं, दान करते हैं और भक्ति में दिन व्यतीत करते हैं। यह व्रत आत्मशुद्धि, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक माना गया है।
उत्पन्ना एकादशी व्रत विधि
- व्रत के एक दिन पूर्व दशमी तिथि को सात्विक आहार लें और व्रत का संकल्प करें।
- एकादशी के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और गंगाजल से शुद्धि करें।
- भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाकर पूजा आरंभ करें।
- पीले वस्त्र, तुलसीदल, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें।
- दिनभर उपवास रखें फलाहार या निर्जला व्रत सामर्थ्य अनुसार करें।
- भजन-कीर्तन करें, विष्णु सहस्रनाम या गीता का पाठ करें।
- द्वादशी तिथि की सुबह दान-पुण्य कर ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
- अंत में स्वयं प्रसाद ग्रहण कर व्रत पूर्ण करें।













