नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट बृहस्पतिवार को राष्ट्रपति संदर्भ पर अपना फैसला सुनाएगा, जिसमें पूछा गया था कि क्या संवैधानिक न्यायालय राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकता है। प्रधान न्यायाधीश बी.आर.गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी.एस.नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए.एस.चंदुरकर की संविधान पीठ ने 10 दिनों तक दलीलें सुनने के बाद 11 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

11 सितंबर को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने केंद्र से सवाल किया था कि अगर लोकतंत्र का कोई एक अंग अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहता है, तो अदालत, जोकि संविधान का संरक्षक है, शक्तिहीन कैसे रह सकती है।
ष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पूछे थे 14 सवाल
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मई में संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए शीर्ष अदालत से यह जानना चाहा था कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करते समय राष्ट्रपति द्वारा विवेकाधिकार के इस्तेमाल के लिए न्यायिक आदेशों द्वारा समयसीमा निर्धारित की जा सकती है।
‘राष्ट्रपति संदर्भ’ का निर्णय तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित विधेयकों की मंजूरी को लेकर राज्यपाल की शक्तियों पर न्यायालय के आठ अप्रैल के फैसले के बाद आया था। पांच पन्नों के संदर्भ में मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे हैं और राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों से निपटने में अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों पर उसकी राय जानने की कोशिश की।
क्या है पूरा मामला
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने 8 अप्रैल को एक फैसले में कहा कि 10 विधेयकों पर सहमति रोकने का तमिलनाडु के राज्यपाल का निर्णय “अवैध” और “मनमाना” था और राष्ट्रपति को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए तीन महीने की समयसीमा तय की।
दो-न्यायाधीशों की पीठ ने देखा था कि इन दस विधेयकों को मूल रूप से पारित होने और राज्यपाल की सहमति के लिए प्रस्तुत किए जाने के बाद काफी समय बीत चुका है और दस में से दो विधेयक तो 2020 तक के हैं।










