संचार नाउ। गौतमबुद्धनगर की न्यायिक इतिहास में शुक्रवार का दिन एक अहम मोड़ बनकर दर्ज हो गया। वो नाम, जो तीन दशक से दिल्ली–एनसीआर और पश्चिमी यूपी की अपराध दुनिया पर साया बनकर मंडराता था सुंदर भाटी। अब कानून की कठोर सजा के शिकंजे में पूरी तरह कस गया है। अदालत ने गैंगस्टर एक्ट के इस चर्चित मामले में भाटी सहित 10 अपराधियों को 9-9 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई। फैसला सुनते ही अदालत कक्ष में कुछ पलों के लिए गहरा सन्नाटा छा गया… जैसे वर्षों की दहशत का एक अध्याय समाप्त होने की घोषणा हो गई हो।

2015 की वो रात… जब दो परिवारों के घरों में हमेशा के लिए सन्नाटा उतर गया
8 फरवरी 2015 को नियाना गांव में शादी समारोह से लौटते वक्त दादूपुर के ग्राम प्रधान व सपा नेता हरेंद्र नागर और उनके सरकारी गनर भूदेव शर्मा पर गोलियों की बारिश हुई। एक तरफ दो मासूम परिवारों का सहारा छीन गया, दूसरी तरफ पूरा जिला दहशत में डूब गया। इसी हमले में बदमाश जतिन खत्री भी ढेर हुआ।
आरोप लगा कि सरिया और स्क्रैप के कारोबार, पानी सप्लाई और वर्चस्व की लड़ाई ने इस हत्या को जन्म दिया — और इसके पीछे कुख्यात सुंदर भाटी का नाम सामने आया। इसी प्रकरण से शुरू हुई गैंगस्टर की कानूनी लड़ाई का आज अंतिम फैसला हुआ।
सजा से पहले ही कई अपराधियों ने काट दी थी उम्र — दो को जेल भेजा, आठ को रिहाई का आदेश
सजा पाए 10 दोषियों में सुंदर भाटी, सिंहराज, विकास पंडित, योगेश, ऋषिपाल, बॉबी उर्फ शेरसिंह, सोनू, यतेन्द्र चौधरी, अनूप भाटी और दिनेश भाटी शामिल हैं। सिंहराज और ऋषिपाल को छोड़कर बाकी आठ अपराधी पहले ही अपनी घोषित सजा से अधिक समय जेल में बिता चुके थे, इसलिए उन्हें रिहा कर दिया गया।
जबकि बाकी दो को सजा पूरी करने जेल भेजा गया है।
तीन दशक का अपराध साम्राज्य — जिस नाम से लोग कांप उठते थे
सुंदर भाटी… एक ऐसा नाम, जिसे सुनते ही यूपी के कई जिलों में लोगों की धड़कनें तेज हो जाती थीं। ट्रांसपोर्ट व्यवसाय से शुरू हुआ सफर जल्द ही सुपारी किलिंग, रंगदारी, स्क्रैप व सरिया चोरी, जमीन विवादों में दबंगई और ठेकों पर कब्जे के नेटवर्क में बदल गया।
2015 में गौतमबुद्धनगर जेल के अंदर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों के साथ उसका वायरल फोटो यह साबित करता था कि उसकी पहुंच कितनी गहरी थी राजनीति से लेकर जेल प्रशासन तक, हर जगह उसकी मौजूदगी महसूस होती थी।
उसका गैंग कई चर्चित हत्याओं से जुड़ा रहा। अतीक अहमद और अशरफ की हत्या के दौरान भी उसका नाम चर्चा में रहा, भले ही अधिकारियों ने इसकी पुष्टि न की हो। वह यूपी पुलिस की 65 बड़े माफियाओं की सूची में शामिल है।

जेल से बाहर आया तो हवा में फिर दहशत घुलने लगी थी…
2024 में जमानत मिलने के बाद लोगों में यह चिंता गहराने लगी कि कहीं वेस्ट यूपी में एक बार फिर वर्चस्व की जंग न भड़क उठे।
नोएडा में सरिया और स्क्रैप के कारोबार पर दबंगई की होड़ नई सुर्खियां बना रही थी। अनिल दुजाना के एनकाउंटर के बाद भाटी का प्रभाव बढ़ने की बात कही जाने लगी थी।
लोगों को डर था कि वर्षों पुराने खूनी संघर्ष फिर से जीवित न हो जाएँ… लेकिन पुलिस की चौकन्नी निगरानी और अदालत का यह फैसला आज उस आशंका को हमेशा के लिए शांत करता दिखाई देता है।
न्याय की जीत — और एक खौफनाक अध्याय का अंत
अदालत के फैसले को विशेषज्ञ केवल कानूनी जीत नहीं, बल्कि समाज के भरोसे की बहाली मान रहे हैं। कई परिवारों के घाव आज भी हरे हैं, लेकिन कानून ने यह संदेश दे दिया है कि अपराध चाहे कितना बड़ा क्यों न हो, अंत में न्याय की लौ अंधेरे पर जीत ही जाती है। आज वेस्ट यूपी की हवा में एक अलग सा सुकून है —
जैसे कोई कह रहा हो…
“अब डर थोड़ा कम हुआ है।”













