भारत और ब्रिटेन के बीच होने जा रही फ्री ट्रेड डील को लेकर चारों तरफ चर्चा है. सरकार इसे बड़ी आर्थिक जीत बता रही है, लेकिन हर कोई इससे खुश नहीं है. खासकर भारतीय व्हिस्की बनाने वाली कंपनियों में इस डील को लेकर नाराज़गी और डर साफ दिख रहा है. बात सीधी है, इस समझौते के बाद अब ब्रिटेन की महंगी स्कॉच व्हिस्की भारत में पहले से कहीं ज्यादा सस्ती मिलेगी. और यही बात देसी शराब निर्माताओं को खटक रही है.
अब सस्ती स्कॉच आएगी इंडिया, देसी ब्रांड्स की मुश्किल बढ़ेगी
Sky News की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस डील के तहत भारत स्कॉच व्हिस्की पर लगने वाला टैक्स 150% से घटाकर 75% करने जा रहा है. यानी जो व्हिस्की पहले केवल अमीरों की पहुंच में थी, अब आम दुकानों पर आसानी से और कम दाम में मिलने लगेगी. CIABC (Confederation of Indian Alcoholic Beverage Companies) के डायरेक्टर जनरल अनंत एस अय्यर का कहना है कि इससे भारतीय ब्रांड्स पर दोहरी मार पड़ेगी, एक तरफ पहले से मंहगा उत्पादन और दूसरी तरफ बाहर से आ रहे सस्ते प्रोडक्ट्स.
उनका कहना है, हमारे देश में मौसम गर्म है. यहां व्हिस्की जल्दी पक जाती है, लेकिन स्कॉच कहने के लिए उसे तीन साल तक लकड़ी के पीपों में रखना ज़रूरी है. इतनी देर रखने से हमारा एक-तिहाई माल तो हवा में उड़ जाता है.” यानि जो चीज़ यहां एक साल में तैयार हो सकती है, उसे तीन साल तक स्टोर करना पड़ता है. और इतने लंबे स्टोरेज से न सिर्फ लागत बढ़ती है, बल्कि बड़ा नुकसान भी होता है.
सस्ते स्कॉच के बीच कैसे टिके रहेंगे देसी ब्रांड?
भारत दुनिया का सबसे बड़ा व्हिस्की पीने वाला देश है, लेकिन यहां बिकने वाली ज्यादातर शराब देसी ब्रांड्स की होती है. स्कॉच की हिस्सेदारी अभी सिर्फ 3% है. लेकिन अब जब स्कॉच सस्ती होगी, तो लोग उसी की तरफ खिंचेंगे. CIABC की मानें तो सस्ते दामों में ढेर सारे विदेशी ब्रांड्स भारत में घुस आएंगे. इससे देसी कंपनियों की बिक्री गिरेगी और बाजार पर पकड़ कमजोर होगी. सिर्फ लागत की बात नहीं है. कंपनियों को ये भी डर है कि विदेशी ब्रांड्स की मार्केटिंग और ब्रांड वैल्यू पहले से ज्यादा है. जब एक नामी स्कॉच ब्रांड सस्ते में मिलेगा, तो ग्राहक देसी कंपनी को क्यों चुनेगा?
ट्रेड डील में छिपे और भी खतरे
ट्रेड डील सिर्फ शराब तक सीमित नहीं है. कई और सेक्टर में भारत ने ब्रिटेन को बाजार में एंट्री दी है. लेकिन एक अहम मुद्दा है, रूल्स ऑफ ओरिजिन. इसका मतलब होता है कि जो प्रोडक्ट भारत में आ रहा है, वो असल में कहां बना है. अगर ये नियम ढीले हैं, तो दूसरे देश ब्रिटेन के रास्ते अपने सस्ते सामान भारत में भेज सकते हैं. इससे लोकल इंडस्ट्री को भारी नुकसान हो सकता है. साथ ही, ब्रिटेन का कार्बन टैक्स भी चिंता का विषय है. इससे भारत के स्टील और दूसरे मेटल प्रोडक्ट्स का एक्सपोर्ट महंगा हो सकता है. और एक और बात अगर भारत को डील में कोई दिक्कत हुई, तो उसका निपटारा कैसे होगा? इस पर भी अब तक साफ जवाब नहीं आया है.
एक्सपोर्ट बढ़ने का राग अलाप रही है सरकार
सरकार कह रही है कि डील से एक्सपोर्ट बढ़ेगा, रोजगार आएगा और विदेशी निवेश भी. लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और है. छोटे और मंझोले कारोबारी, खासकर जो देसी ब्रांड्स बनाते हैं, वो इससे खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. एक तरह से देखा जाए तो ये डील कुछ बड़ी कंपनियों के लिए फायदेमंद हो सकती है, लेकिन छोटे उद्यमों के लिए मुश्किलें खड़ी करेगी.
डील की कीमत क्या देसी कारोबार चुकाएंगे?
फ्री ट्रेड एग्रीमेंट सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन जब उसके असर से लोकल कारोबार कमजोर होने लगे तो फायदा नहीं, नुकसान ज्यादा होता है. सस्ती स्कॉच आने से हो सकता है ग्राहकों को फायदा मिले, लेकिन इसकी कीमत पर अगर देसी कंपनियां बंद होने लगें, तो लंबे समय में ये डील घाटे का सौदा साबित हो सकती है. सरकार को अब यह देखना होगा कि विदेशी ब्रांड्स को जगह देते वक्त भारतीय उद्योगों को कैसे सुरक्षा दी जाए, ताकि डील दोनों पक्षों के लिए वाकई ‘फ्री और फेयर’ हो.