आईआईटी खड़गपुर, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) और डेक्कन कॉलेज के पुरातत्व वैज्ञानिकों की एक टीम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैतृक गांव वडनगर में चौंकाने वाले नतीजे मिले हैं। पीएम मोदी मोदी के पैतृक गांव में 2800 साल पुरानी बस्ती के प्रमाण मिले हैं। वडनगर में खुदाई के दौरान विशिष्ट पुरातात्विक कलाकृतियाँ, मिट्टी के बर्तन, तांबा, सोना, चाँदी, लोहे की वस्तुएँ और जटिल रूप से डिज़ाइन की गई चूड़ियाँ, सिक्के के सांचे भी मिले हैं। इसे एक ही किलेबंदी में भारत का सबसे पुराना जीवित शहर माना जा रहा है।
गुजरात के वडनगर में ज्वाइंट स्टडी के लिए गहरी खुदाई करने वाले सभी संस्थानों की ओर से साझे तौर पर बताया गया है, “वडनगर में गहरी पुरातात्विक खुदाई से, आईआईटी खड़गपुर, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) और डेक्कन कॉलेज के वैज्ञानिकों के एक संघ को अब एक मानव बस्ती के सबूत मिले हैं। यह 800 ईसा पूर्व जितना पुराना है, जो उत्तर-वैदिक/पूर्व-बौद्ध महाजनपदों या कुलीनतंत्र गणराज्यों के समकालीन है।”
बनेगा डिजिटल म्यूजियम
वडनगर में गहरी पुरातात्विक खुदाई का नेतृत्व एएसआई ने किया था। संयुक्त अध्ययन को पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय (गुजरात सरकार) द्वारा वित्त पोषित किया गया था। निदेशालय को वडनगर में भारत का पहला एक्सपिरिएंशल डिजिटल म्यूजियम बनाने का काम सौंपा गया था। संस्थान के अनुसार, वडनगर और सिंधु घाटी सभ्यता के शोध को पिछले पांच वर्षों से इन्फोसिस फाउंडेशन की पूर्व अध्यक्ष सुधा मूर्ति की ओर से भी खुलकर फंडिंग के जरिए समर्थन दिया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, संस्थानों ने साझा बयान में आगे कहा, “ संयुक्त अध्ययन से यह भी पता चलता है कि 3,000 साल की अवधि के दौरान विभिन्न राज्यों का उत्थान और पतन और मध्य एशियाई योद्धाओं द्वारा भारत पर बार-बार आक्रमण वर्षा या सूखे जैसे जलवायु में गंभीर परिवर्तन से प्रेरित थे। इसके निष्कर्ष हाल ही में प्रतिष्ठित एल्सेवियर जर्नल क्वाटरनरी साइंस रिव्यूज़ में ‘प्रारंभिक ऐतिहासिक से मध्ययुगीन काल तक दक्षिण एशिया में जलवायु, मानव निपटान और प्रवासन: वडनगर, पश्चिमी भारत में नए पुरातात्विक उत्खनन से साक्ष्य’ नामक एक पेपर में प्रकाशित हुए हैं।
बस्ती-कलाकृतियां अंधकार युग को मिथक साबित कर सकती है
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (खड़गपुर) के एक संयुक्त अध्ययन में हड़प्पा के पतन के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैतृक गांव वडनगर में सांस्कृतिक निरंतरता के प्रमाण मिले हैं। इससे यह संभावना बनती है कि “अंधकार युग (Dark Age)” एक मिथक था। वडनगर में प्राचीन मानव बस्ती कलाकृतियों का खजाना है। इतिहास लेखन के दौरान भारत उपमहाद्वीप में सिंधु घाटी सभ्यता के पतन और लौह युग और गांधार, कोशल और अवंती जैसे शहरों के उद्भव के बीच की अवधि को पुरातत्वविदों द्वारा अक्सर अंधकार युग के रूप में चित्रित किया गया है।
वडनगर में गहरी खुदाई से और क्या-क्या मिला?
पेपर के को-राइटर और एएसआई पुरातत्वविद् (आर्कियोलॉजिस्ट) डॉ। अभिजीत अंबेकर ने कहा, “वडनगर एक बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक (बौद्ध, हिंदू, जैन और इस्लामी) बस्ती थी। कई गहरी खाइयों में उत्खनन से सात सांस्कृतिक चरणों (कालों) की मौजूदगी का पता चला। यानी मौर्य, इंडो-ग्रीक, इंडो-सीथियन या शक-क्षत्रप उर्फ ‘क्षत्रप’, प्राचीन अचमेनिद साम्राज्यों के प्रांतीय गवर्नरों के वंशज, हिंदू-सोलंकी, मुगल सल्तनत (इस्लामिक) से लेकर गायकवाड़-ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और शहर आज भी कायम है। हमारी खुदाई के दौरान सबसे पुराने बौद्ध मठों में से एक की खोज की गई है। हमें विशिष्ट पुरातात्विक कलाकृतियाँ, मिट्टी के बर्तन, तांबा, सोना, चांदी और लोहे की वस्तुएं और जटिल डिजाइन वाली चूड़ियाँ मिलीं। हमें वडनगर में इंडो-ग्रीक शासन के दौरान ग्रीक राजा एपोलोडैटस के सिक्कों के सांचे भी मिले।
1400 ईसा पूर्व जितनी पुरानी हो सकती है वडनगर की मानव बस्ती
रिसर्च पेपर के मुख्य लेखक आईआईटी खड़गपुर के प्रोफेसर अनिंद्य सरकार ने कहा, “ हमें मिले पुरातात्विक अभिलेख दुर्लभ हैं, सबसे पहला मौर्य काल (320-185 ईसा पूर्व) के दौरान सुदर्शन झील, गिरनार पहाड़ी, गुजरात में सम्राट अशोक का शिलालेख है। हमारे साक्ष्य वडनगर को भारत में अब तक खोजे गए एकल किलेबंदी के भीतर सबसे पुराना जीवित शहर बनाते हैं।।। हमारी कुछ हालिया अप्रकाशित रेडियोकार्बन तिथियों से पता चलता है कि यह बस्ती 1400 ईसा पूर्व जितनी पुरानी हो सकती है, जो शहरी हड़प्पा काल के बाद के बहुत बाद के चरण के समकालीन है। अगर यह सच है, तो यह पिछले 5500 वर्षों से भारत में सांस्कृतिक निरंतरता का सुझाव देता है और तथाकथित अंधकार युग एक मिथक हो सकता है।