प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि धोखाधड़ी (420 आईपीसी) और आपराधिक विश्वासघात (486 आईपीसी) के अपराध एक ही मामले में एक साथ मौजूद नहीं हो सकते, क्योंकि वे एक दूसरे के विपरीत हैं.
इसी सिद्धांत के आधार पर कोर्ट ने मुरादाबाद के एक मामले में जारी समन आदेश को रद्द कर दिया. Gसमें एक व्यक्ति को आईपीसी की धारा 420 और धारा 406 दोनों के तहत तलब किया गया था. अदालत ने मामले को निचली अदालत में वापस भेज दिया, ताकि कानून के अनुसार नए सिरे से समन पर आदेश पारित किया जा सके.
दोनों एक साथ मौजूद नहीं हो सकते: यह आदेश न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने रविवार को दिया. मुरादाबाद के शराफत याचिका दाखिल कर अपने खिलाफ चल रही मुकदमे की समस्त कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी. याची के वकील ने तर्क दिया कि याची निर्दोष है और उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है.
उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के दिल्ली रेस क्लब (1940) लिमिटेड और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया था कि धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के अपराध स्वतंत्र और भिन्न हैं और दोनों एक साथ मौजूद नहीं हो सकते.
धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात एक दूसरे के विपरीत: अदालत ने ‘दिल्ली रेस क्लब (सुप्रा)’ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को स्पष्ट रूप से उद्धृत किया, जिसमें यह कहा गया है कि धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात स्वतंत्र और भिन्न हैं और एक ही तथ्यों में एक साथ मौजूद नहीं हो सकते क्योंकि वे एक दूसरे के विपरीत हैं.
कोर्ट ने कहा कि समन आदेश कानून के अनुसार नहीं था. परिणामस्वरूप, एसीजेएम कोर्ट मुरादाबाद के 7 जुलाई 2023 को पारित समन आदेश को रद्द कर दिया गया. मामले को संबंधित अदालत में वापस भेज दिया गया है, ताकि समन के बिंदु पर कानून के अनुसार शीघ्रता से नया आदेश पारित किया जा सके.