संचार न्यूज़। ग्रेटर नोएडा में जिला न्यायालय सूरजपुर ने नोएडा के 2018 के एक डिजिटल रेप (पॉस्को एक्ट) के मामले मे दोषी को बीस वर्ष की सजा सुनाई है। अपर सत्र विशेष न्यायाधीश पोक्सो एक्ट विकास नागर ने आरोपी सुबोध कुमार दास को दोषी मानते हुए पचास हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। जुर्माने की राशि जमा ने करने पर 6 महीने की अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी नहीं होगी। वहीं जेल में बिताई गई अवधि इस सजा में समायोजित की जाएगी।
जिला शासकीय सहायक अधिवक्ता जेपी भाटी ने बताया कि नोएडा के थाना फेस टू में 4 नवंबर 2018 को आरोपी के खिलाफ पीड़ित परिवार ने पुलिस को शिकायत दी। शिकायत में परिवार ने बताया कि उसकी नाबालिक पांच वर्षीय बेटी के साथ डिजिटल रेप की घटना को अंजाम दिया गया है। शिकायत के आधार पर पुलिस ने पोक्सो एक्ट में मामला दर्ज किया और पीड़ित को मेडिकल जांच के लिए भेज दिया। पुलिस ने मामले में तत्काल कार्रवाई करते हुए आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया वहीं पुलिस ने मामले की चार्जशीट जिला न्यायालय में पेश की।
जिला न्यायालय सूरजपुर में मामले की सुनवाई करते हुए अपर शत्र विशेष न्यायाधीश पोक्सो एक्ट विकास नागर ने दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की जिरह, गवाहो के बयान और सबूत के आधार पर आरोपी सुबोध कुमार दास को आईपीसी की धारा 376 एबी व पोक्सो एक्ट में दोषी मानते हुए 20 वर्ष कठोर कारावास की सजा सुनाई है वही ₹50000 का जुर्माना भी लगाया है।
क्या होता है डिजिटल रेप
जब पहली बार इस शब्द को सुनते हैं तो जहन में आता है कि यह जरूर कुछ टेक्निकल या वर्चुअल किया गया सेक्सुअल एसॉल्ट होगा। लेकिन यह ऐसा बिल्कुल नहीं है। डिजिटल रेप वह अपराध है जिसमें पीड़िता या बिना किसी की मर्जी के उंगली से या हाथ पैर के अंगूठे से जबरदस्ती पेनेट्रेशन किया गया हो। विदेशों में डिजिटल दुष्कर्म शब्द काफी समय से इस्तेमाल किया जा रहा है। अब देश के कानून में भी इसका इस्तेमाल किया जाने लगा है। अंग्रेजी शब्द कोश में उंगली, अंगूठा, पैर की अंगुली को भी डिजिट से संबोधित किया जाता है यानी निजी अंगों को उंगली से छेड़ने को डिजिटल दुष्कर्म कहते हैं।
डिजिटल रेप को 2013 में मिली कानूनी मान्यता
2013 से पहले भारत में छेड़खानी या डिजिटल रेप को लेकर कोई कानून नहीं था लेकिन निर्भया केस के बाद 2013 में इस शब्द को मान्यता मिली। बाद में डिजिटल रेप को पोक्सो एक्ट में शामिल किया गया।