हाईकोर्ट ने कहा कि सच्चाई और तथ्य छिपाकर अदालत आने वाले किसी भी राहत के हकदार नहीं। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने आपराधिक इतिहास छिपाकर दाखिल की गई जमानत अर्जी खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की एकल पीठ ने इमरान की जमानत अर्जी पर दिया।
इमरान ने गाजियाबाद के कोतवाली थाना में गैंगस्टर अधिनियम के तहत दर्ज मामले में जमानत की लिए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। याची अधिवक्ता ने दलील दी कि इमरान का केवल तीन मामलों में आपराधिक इतिहास है, जिनमें उसे पहले ही जमानत मिल चुकी है। उन्होंने यह भी दावा किया कि इमरान का इन तीन मामलों के अलावा कोई अन्य आपराधिक इतिहास नहीं है और वह 21 अप्रैल, 2025 से जेल में है। इसलिए उसे जमानत दी जानी चाहिए।
अपर सरकारी अधिवक्ता ने इन दावों का विरोध किया। कोर्ट को सूचित किया कि गैंग-चार्ट में बताए गए तीन मामलों के अतिरिक्त इमरान के खिलाफ सात और आपराधिक मामले दर्ज हैं। इन मामलों में आर्म्स एक्ट, एनडीपीएस एक्ट, हत्या का प्रयास, जबरन वसूली आदि हैं। याची अधिवक्ता ने स्वीकार किया कि वह आपराधिक इतिहास से वाकिफ नहीं थे, जिसके चलते इन महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख नहीं किया जा सका।
कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने साफ हाथों से अदालत में प्रवेश नहीं किया है। उसने अपने आपराधिक इतिहास से जुड़े अहम तथ्यों को छिपाया है। कोर्ट ने कहा कि नीरू यादव बनाम यूपी राज्य और सुधा सिंह बनाम यूपी राज्य और अन्य के फैसलों में यह स्पष्ट किया गया है कि जमानत याचिकाओं पर विचार करते समय आरोपी के आपराधिक इतिहास को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आदतन अपराधियों के मामलों में जमानत देने के लिए अदालतों को विवेकपूर्ण तरीके से अपनी शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए। इन टिप्पणियों के साथ जमानत अर्जी खारिज कर दी।