इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए निर्णय दिया है कि जिस लड़की की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हुई हो, वह 20 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले अपनी शादी को रद्द करा सकती है। इसी प्रकार जिस लड़के का विवाह 21 वर्ष की आयु से पहले हुआ है वह 23 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले अपनी शादी रद्द करा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह एवं न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने गौतमबुद्ध नगर के एक पारिवारिक मामले की सुनवाई करते हुए की है।
कोर्ट ने कहा कि विधायी मंशा पुरुषों को अपनी शिक्षा पूरी करने तथा वित्तीय स्वतंत्रता हासिल करने के लिए अतिरिक्त तीन साल की अनुमति देना है। देश में पुरुषों के लिए विवाह की आयु 21 वर्ष है जबकि महिलाओं के लिए 18 वर्ष है। इसी के साथ खंडपीठ ने विवाह को शू्न्य घोषित करने से इनकार करने के पारिवारिक न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया है। अपीलार्थी ने यह राहत इस आधार पर मांगी थी कि 2004 में हुई शादी बाल विवाह थी। तब वह केवल 12 साल का था जबकि उसकी पत्नी मात्र नौ साल की थी।
कोर्ट ने कहा कि यह महिलाओं को समान अवसर से वंचित करने जैसा है। जानबूझकर महिला आबादी को समान अवसर से वंचित कर समाज और वैधानिक कानून में पहले से मौजूद पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रह की पुष्टि की गई है। कोर्ट ने कहा कि विधायिका यह मानती है कि 18 वर्ष या उससे अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति अपने कृत्य बाल विवाह करने के परिणामों को समझता है। विधायी धारणा यह प्रतीत होती है कि वैवाहिक रिश्ते में जो दोनों पति-पत्नी में बड़ा होगा और परिवार के खर्चों को चलाने का वित्तीय बोझ उठाएगा, जबकि उसकी महिला साथी बच्चे को जन्म देने वाली रहेगी।
पति ने वर्ष 2013 में 20 साल, 10 महीने और 28 दिन की उम्र में बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए) की धारा तीन के लाभ का दावा किया था। पत्नी का तर्क था कि राहत का दावा नियत समयावधि से काफी पहले किया गया। कहा कि पति 2010 में 18 साल के हो गए थे। हाईकोर्ट के सामने प्रश्न यह था कि क्या पुरुष के लिए वयस्कता की उम्र 18 साल से शुरू होगी या 21 साल, जो शादी के लिए कानूनी उम्र है।
कोर्ट ने कहा कि 21 साल से कम उम्र के पुरुष और 18 साल से कम उम्र की महिला को पीसीएमए के प्रयोजनों के लिए बच्चा माना जाता है। कोर्ट ने कहा कि एक बार जब पीसीएमए में इस्तेमाल नाबालिग शब्द 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को संदर्भित करता है, तो स्पष्ट रूप से 18 वर्ष से अधिक उम्र का व्यक्ति नाबालिग नहीं होगा।
खंडपीठ ने कहा कि कोर्ट की कार्यवाही शुरू करने की सीमा पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए एकल है। वह इंडिपेंडेंट थॉट मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अलग होने में असमर्थ है। इस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा है कि जिस लड़की की शादी 18 साल से पहले हुई हो, वह 20 साल की उम्र से पहले अपनी शादी रद्द करा सकती है और इसी तरह एक लड़का 23 साल की उम्र से पहले अपनी शादी रद्द करा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि पति 23 साल का होने से पहले मुकदमा कर सकता है। यह निर्विवाद था कि दंपती के बीच बाल विवाह हुआ था इसलिए अदालत ने विवाह को शून्य घोषित कर दिया। प्रकरण में पत्नी ने 50 लाख रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता मांगा था। पति ने कहा कि वह केवल 15 लाख रुपये का भुगतान कर सकता है। खंडपीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट के आदेश को कायम नहीं रखा जा सकता। पत्नी को एक महीने की अवधि के भीतर 25 लाख रुपये का भुगतान किया जाए।