लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा. जहां अच्छे प्रशासक और बेहतर कानून व्यवस्था के दावों के बावजूद BJP को अनुमान के मुताबिक सीटें नहीं मिलीं और BJP 33 सीट पर अटक गई. ऐसे में अब पार्टी के सामने उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में जीत हासिल कर लोकसभा में हुए नुकसान की भरपाई करने की चुनौती है. इसके लिए सीएम योगी ने स्पेशल 30 की एक टीम भी तैयार की है. हालांकि इसमें दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक को जगह नहीं मिली है.
दरअसल, प्रदेश की करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, कुंदरकी, गाजियाबाद, खैर, मीरापुर, फूलपुर, मंझवा और सीसामऊ पर उपचुनाव होना है. इन सीटों में 5 समाजवादी पार्टी के पास हैं तो RLD-निषाद पार्टी की एक-एक सीटें हैं, जबकि BJP की 3 सीटें हैं. लेकिन लोकसभा चुनाव में जिस तरह से समाजवादी पार्टी ने BJP को चौंकाया उसे देखते हुए ये उपचुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए अग्निपरीक्षा माने जा रहे हैं.
ईमानदार और जिताऊ उम्मीदवार पर दांव लगाएगी बीजेपी
समाजवादी पार्टी की कड़ी चुनौती के बीच योगी आदित्यनाथ उपचुनाव में BJP को जीत दिलाने के लिए कमर कस चुके हैं. इसी सिलसिले में लखनऊ में उनके सरकारी आवास में बड़ी बैठक हुई. इस बैठक में सीएम योगी ने सभी मंत्रियों से फीडबैक लिया, तो उपचुनावों के लिए आगे की रणनीति पर बात की. सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ईमानदार और जिताऊ कैंडिडेट पर ही दांव लगाया जाएगा. प्रत्याशी की उसकी साफ छवि और जनता से जुड़ाव उसके चयन की प्राथमिकता होगी.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में अब BJP के सामने बड़ी चुनौती 10 विधानसभा सीटों को लेकर होने वाले उपचुनाव को लेकर है. BJP पूरी शिद्दत के साथ इन सीटों पर जीत की तैयारी में लग गई है. इसके लिए 30 मंत्रियों को अहम जिम्मेदारी दी गई है. हर सीट पर इन मंत्रियों को जीत की रणनीति तय करने का दायित्व सौंपा गया है.
इन 30 मंत्रियों को सौंपी गई जिम्मेदारी
दरअसल, सीएम योगी ने उपचुनाव के लिए 30 मंत्रियों की अपनी टीम बनाई है. सीएम योगी के स्पेशल 30 में दोनों डिप्टी सीएम शामिल नहीं हैं. इस टीम में उत्तर प्रदेश के दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक नहीं हैं. करहल सीट की जिम्मेदारी जयवीर सिंह, योगेंद्र उपाध्याय और अजीत पाल सिंह को दी गई है. मिल्कीपुर सीट की जिम्मेदारी सूर्य प्रताप शाही व मयंकेश्वर शरण सिंह, गिरीश यादव और सतीश शर्मा को दी गई है. कटेहरी सीट की जिम्मेदारी स्वतंत्र देव सिंह व आशीष पटेल और दयाशंकर मिश्र को दी गई है. सीसामऊ सीट की जिम्मेदारी सुरेश खन्ना व नितिन अग्रवाल को दी गई है.
इनके अलावा फूलपुर सीट की जिम्मेदारी दयाशंकर सिंह व राकेश सचान को दी गई है. मझवां सीट की जिम्मेदारी अनिल राजभर, आशीष पटेल, रविंद्र जायसवाल और रामकेश निषाद को दी गई है. गाजियाबाद सदर सीट की जिम्मेदारी सुनील शर्मा, बृजेश सिंह और कपिल देव अग्रवाल को दी गई है. मीरापुर सीट की जिम्मेदारी अनिल कुमार व सोमेन्द्र तोमर और केपीएस मलिक को दी गई है. खैर सीट की जिम्मेदारी लक्ष्मी नारायण चौधरी और संदीप सिंह को दी गई है. कुंदरकी सीट की जिम्मेदारी धर्मपाल सिंह, जेपीएस राठौर जसवंत सैनी और गुलाब देवी को दी गई है. इसके साथ ही संगठन की ओर से वरिष्ठ पदाधिकारियों को भी जिम्मेदारी दी गई है.
सीटों के समीकरण से बढ़ सकती है बीजेपी की चिंता
उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव राज्य और देश दोनों की राजनीति तय करने वाले साबित हो सकते हैं, क्योंकि ये उत्तर प्रदेश ही था जिसने साल 2014 और 2019 में BJP की बहुमत वाली सरकार को मजबूती दी. लेकिन 2024 के चुनावों में यूपी में BJP की कमजोरी ने उसे बहमुत से दूर कर दिया. ऐसे में BJP के पास लोकसभा में बनी धारणा को तोड़कर इन उपचुनावों के माध्यम से कार्यकर्ताओं में जोश भरने का मौका है. हालांकि इन सीटों के समीकरण BJP की चिंता बढ़ाने के लिए काफी हैं.
हर सीट पर बीजेपी के लिए कई चुनौती
उत्तर प्रदेश की जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होना है, उसकी हर एक सीट पर बीजेपी के लिए कई चुनौतियां हैं. अखिलेश यादव की करहल के बाद दूसरे नंबर पर बीजेपी के लिए मुश्किल सीट है मुरादाबाद की कुंदरकी. कुंदरकी में 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के जियाउर रहमान विधायक बने थे. लोकसभा चुनाव में वे संभल सीट से सांसद चुने गए हैं. कुंदरकी विधानसभा पर बीजेपी को केवल एक बार 1993 में सफलता मिली थी. इस विधानसभा में मुस्लिम वोट करीब 65 फीसदी और हिन्दू वोट 35 फीसदी है. इसके अलावा कानपुर की सीसामऊ सीट समाजवादी पार्टी के विधायक इरफान सोलंकी के सज़ायाफ्ता होने से खाली हुई है. यह समाजवादी पार्टी की मजबूत सीटों में से एक है, जहां इस बार सपा इरफान सोलंकी के परिवार से किसी को टिकट दे सकती है. वहीं, इरफान के साथ लोगों की सहानुभूति भी दिखाई देती है, ऐसे में यह सीट बीजेपी के लिए मुश्किल सीटों में से एक है.
मुरादाबाद की कुंदरकी सीट संभल लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है, लेकिन मुस्लिम बहुल होने की वजह से यह सीट समाजवादी पार्टी की गढ़ मानी जाती है. जियाउर रहमान वर्क यहां से विधायक थे, जो इस बार संभल की सीट से सांसदी जीतकर आए हैं. ऐसे में 60 फीसदी मुस्लिम बाहुल्य वाली इस सीट पर भाजपा के लिए जीतना बेहद मुश्किल है. कटहरी अंबेडकर नगर की सीट है, जहां से समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधायक लालजी वर्मा विधायक थे और इस बार अंबेडकर नगर से सपा के सांसद बन गए. पिछले चुनाव में सपा में आने से पहले लालजी वर्मा बसपा के बड़े नेताओं में रह चुके हैं. अब लालजी वर्मा अपनी बेटी छाया वर्मा को यहां से चुनाव लड़ाना चाहते हैं और ये सीट भी बीजेपी के लिए मुश्किल सीटों में से एक है.
मीरापुर और फूलपुर में बीजेपी के लिए चुनौती
मुजफ्फरनगर की मीरापुर जीतना भी बीजेपी के लिए आसान नहीं है. 2022 में आरएलडी, सपा गठबंधन ने यह सीट जीती थी. चंदन चौहान जो समाजवादी पार्टी और आरएलडी के गठबंधन में जीतकर विधायक बने थे, इस बार बीजेपी-आरएलडी गठबंधन से बिजनौर से सांसद हो गए हैं, लेकिन यह सीट मुस्लिम बहुल होने की वजह से बीजेपी के लिए आसान नहीं है. फूलपुर विधानसभा से 2022 में बीजेपी जीती थी, जहां से प्रवीण पटेल विधायक निर्वाचित हुए थे, लेकिन इस बार भाजपा ने प्रवीण पटेल को फूलपुर से सांसदी तो जिता ली, लेकिन प्रवीण पटेल फूलपुर की विधानसभा से हार गए.
गाजियाबाद सांसद अतुल गर्ग इस सीट से विधायक थे. उनके सांसद बनने के बाद गाजियाबाद विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है. बीजेपी की चिंता ये है कि गाजियाबाद में बीजेपी के वोट और लीड दोनों में गिरावट दर्ज की गई. समाजवादी पार्टी के खेमे की जो पांच सीटें खाली हुई हैं, उन पर उसका पलड़ा काफी भारी दिखता है. लेकिन सबकी नजरें फैजाबाद लोकसभा में आने वाली मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर है. जहां से अवधेश प्रसाद 9 बार जीते हैं. अवधेश प्रसाद की जीत को अखिलेश और राहुल बीजेपी की राजनीति के अंत की शुरुआत बता चुके हैं. ऐसे में योगी अगर ये सीट जीत लेते हैं तो 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले ये विपक्ष के बनाए जा रहे नेरेटिव पर बड़ी चोट होगी.