मॉब लिंचिंग पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से दाखिल जनहित याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद जनहित याचिका खारिज कर दी. यूपी सरकार ने पीआईएल की पोषणीयता पर आपत्ति की थी. हाईकोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता ने सरकार का पक्ष रखा. उन्होंने ऐसे मामलों में सरकार की कार्रवाई की जानकारी दी. सरकार के जवाब से संतुष्ट अदालत ने याचिका खारिज कर दी. जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस अवनीश सक्सेना की डिवीजन बेंच ने जनहित याचिका पर सुनवाई की.

पीआईएल में तहसीन एस. पूनावाला बनाम भारत संघ (2018) मामले में मॉब लिंचिंग रोकने और ऐसे मामलों में कार्रवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशों का अनुपालन करने का अनुरोध किया गया था.
अधिवक्ता सैयद अली मुर्तज़ा, सीमाब कय्यूम और रज़ा अब्बास के माध्यम से जनहित याचिका दाखिल की गई थी. जनहित याचिका में कुछ घटनाओं का भी उल्लेख किया गया था और इनमें अलीगढ़ में मई 2025 में हुई घटना भी शामिल थी.
याचिका में की गईं थीं ये मांगें
जनहित याचिका में मांग की गई थी कि वह राज्य सरकार को मॉब लिंचिंग के मामलों से निपटने के लिए प्रत्येक जिले में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति से संबंधित अधिसूचना और परिपत्र जारी किए जाने और ऐसे मामलों में स्टेट्स रिपोर्ट बताए.
मांग की गई थी कि डीजीपी को निर्देश दिया जाए कि वह पिछले पांच वर्षों में मॉब लिंचिंग की घटनाओं की आपराधिक जांच की स्थिति रिपोर्ट दाखिल करें. भीड़-हिंसा के मामलों के लिए विशेष या फास्ट-ट्रैक अदालतों के गठन और मुकदमों की वर्तमान स्थिति बताई जाए. नोडल अधिकारियों और पुलिस खुफिया प्रमुखों के साथ पिछले पांच वर्षों में आयोजित तिमाही समीक्षा बैठकों के परिपत्र और कार्यवृत्त प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाए.
याचिका में मांग की गई थी कि राज्य को निर्देश दिया जाए कि वह सीआरपीसी की धारा 357ए के तहत मुआवजा योजना और पीड़ितों को दिए गए मुआवजे का विवरण करे. साथ ही अलीगढ़ घटना के पीड़ितों को मुआवजे के रूप में 15 लाख रुपये प्रदान करने का निर्देश दिया जाए.
 
			 
                                 
					

 
                                 
                                










