लखनऊ. राजधानी लखनऊ के भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय में 3.31 करोड़ रुपये के वित्तीय घोटाले के मामले में सीआईडी ने बड़ी कार्रवाई की है. नृत्य विभाग के एचओडी ज्ञानेंद्र वाजपेई और तालवाद्य विभाग के एचओडी मनोज मिश्रा समेत सात लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. बता दें कि इस मामले में पिछले माह ही पूर्व कुलपति प्रोफेसर श्रुति सडोलीकर काटकर सहित 12 लोगों के खिलाफ सीआईडी ने चार्जशीट दाखिल की थी.
लखनऊ सीआईडी की आर्थिक अपराध शाखा ने इस मामले में नृत्य विभाग के एचओडी ज्ञानेंद्र वाजपेई, तालवाद्य विभाग के एचओडी मनोज मिश्रा, और निजी फर्मों के संचालकों मोहम्मद शोएब, कुंदन सिंह, सुरेश सिंह, विनोद मिश्रा, और जुगल किशोर वर्मा को गिरफ्तार किया है. सभी आरोपियों को लखनऊ की स्थानीय अदालत में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.
कैसे हुआ घोटाले का खुलासा?
यह मामला पहली बार 5 मार्च 2021 को सामने आया, जब राज्यपाल के निर्देश पर लखनऊ के कैसरबाग कोतवाली में धोखाधड़ी, गबन, और आपराधिक साजिश की धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई थी. शुरुआत में इसकी जांच आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन (ईओडब्ल्यू) को सौंपी गई थी, लेकिन 18 जनवरी 2024 को यह मामला सीआईडी को हस्तांतरित कर दिया गया. सीआईडी की जांच में सामने आया कि तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर श्रुति सडोलीकर काटकर ने कुछ कर्मचारियों और निजी फर्मों के संचालकों के साथ मिलकर शासकीय नियमों और मानकों का उल्लंघन किया.
अनियमितताओं का जाल
सीआईडी की जांच में खुलासा हुआ कि विश्वविद्यालय में बिना टेंडर के कार्यों का आवंटन किया गया और निर्माण कार्यों के भुगतान में भी भारी अनियमितताएं बरती गईं. तत्कालीन कुलपति और छह कर्मचारियों की मिलीभगत से मेसर्स अंजली ट्रेडर्स, मेसर्स पुण्य इंटरप्राइजेज, मेसर्स ऊषा एसोसिएट्स, सांई कृपा ट्रेडिंग कॉरपोरेशन, एक्यूरेट इंजीनियरिंग, एपेक्स कूलिंग सर्विस, शर्मा रेफ्रिजरेशन, विशाल बिल्डर, एचए ट्रेडर्स वर्मा, और बीआर इंटरप्राइजेज जैसी 11 फर्मों को नियम-विरुद्ध लाभ पहुंचाया गया. इन फर्मों के संचालकों ने शासकीय धन का दुरुपयोग कर विश्वविद्यालय को 3.31 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया.
सबूतों के आधार पर चार्जशीट
सीआईडी ने जांच के दौरान कई महत्वपूर्ण सबूत जुटाए, जिनमें दस्तावेज, बैंक लेनदेन के रिकॉर्ड, और आरोपियों के बयान शामिल हैं. इन सबूतों के आधार पर पूर्व कुलपति प्रोफेसर श्रुति सडोलीकर काटकर सहित 12 लोगों के खिलाफ लखनऊ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई थी. जांच में यह भी पाया गया कि कुलपति और अन्य कर्मचारियों ने निजी फर्मों के साथ साजिश रचकर शासकीय धन का गबन किया.
राज्यपाल के निर्देश पर शुरू हुई थी जांच
इस घोटाले की शुरुआत में राज्यपाल द्वारा गठित एक कमेटी ने वित्तीय अनियमितताओं की जांच की थी. कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ही 2021 में कैसरबाग कोतवाली में मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच को पहले ईओडब्ल्यू और फिर सीआईडी को सौंपा गया. सीआईडी ने अपनी जांच में न केवल अनियमितताओं को उजागर किया, बल्कि आरोपियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई भी सुनिश्चित की.