Places of Worship Act 1991 के अनुसार किसी भी ऐसे धार्मिक स्थल के उस स्वरूप को नहीं बदला जा सकता, जैसा 15 अगस्त 1947 को था. यानी अगर आजादी के समय किसी जगह पर मंदिर या मस्जिद थी तो उसका स्वरूप बदलकर कुछ और नहीं किया जा सकता है. इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लगाकर चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांग लिया है. अपना जवाब दाखिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को तीन महीने का समय दिया है और 31 अक्टूबर तक जवाब देने को कहा है.
इस एक्ट के कई प्रोविजन्स के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थीं. एक्ट के अनुसार किसी धार्मिक स्थल की मान्यता को को नहीं बदला जा सकता है. भले ही 1947 में देश के आजाद होने से पहले वह किसी अन्य मान्यता के धार्मिक स्थल को गिराकर ही क्यों न बनाया गया हो. सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में अपना पक्ष रखने के लिए केंद्र सरकार को अतिरिक्त समय दिया है.
मामले की गंभीरता को समझते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह 31 अक्टूबर तक इस संबंध में अपना जवाब दाखिल करें.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अपना एफि़डेबिट दाखिल करने के लिए फरवरी 2023 तक का समय दिया था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिसंबर 2022 और उससे पहले 31 अक्टूबर 2022 तक जवाब देने को कहा था. उससे भी पहले सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर 2022 को केंद्र सरकार से 2 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा था, लेकिन केंद्र ने अब तक इस संबंध में एफिडेबिट दाखिल नहीं किया.
केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए. उन्होंने कहा, यह मामला विचाराधीन है और सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए कुछ और समय चाहिए.