संचार नाउ। ग्रेटर नोएडा शहर को स्वच्छ और सुविधाजनक बनाने के लिए ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण कराया था। इन आधुनिक पिक टॉयलेट और सामान्य शौचालयों को प्रमुख चौराहों और गोलचक्करों पर जनता की सुविधा के लिए निशुल्क स्थापित किया गया। लेकिन अब यह पहल एजेंसी की मनमानी और नियमों की अनदेखी के कारण विवादों में घिर गई है।

दरअसल, प्राधिकरण के स्वास्थ्य विभाग ने इन स्थानों को चिन्हित कर बिल्ड ऑपरेट एंड ट्रांसफर (BOT) आधार पर निजी एजेंसी का चयन किया था। एजेंसी को शौचालयों का निर्माण, देख-रेख और सफाई की जिम्मेदारी सौंपी गई, जबकि आय के स्रोत के रूप में केवल फ्लेक्स बोर्ड के रूप में सीमित एडवर्टाइजमेंट लगाने की अनुमति दी गई थी। हालांकि अब एजेंसी ने नियमों को दरकिनार करते हुए कुछ जगहों पर फ्लेक्स बोर्ड हटाकर उनकी जगह एलईडी स्क्रीनें लगा दी हैं, जिन पर बड़े पैमाने पर डिजिटल एडवर्टाइजमेंट चलाए जा रहे हैं। एलईडी स्क्रीन विज्ञापन दरें सामान्य फ्लेक्स की तुलना में कई गुना अधिक होती हैं, जिससे एजेंसी को तो भारी लाभ हो रहा है, लेकिन प्राधिकरण के राजस्व को गंभीर हानि पहुंच रही है।
एजेंसी ने शहर के पांच प्रमुख स्थानों पर बिना अनुमति एलईडी स्क्रीनें लगाई हैं। इनमें परी चौक और अल्फा-वन कमर्शियल बेल्ट गोलचक्कर, तथा ग्रेटर नोएडा वेस्ट के दो प्रमुख स्थान शामिल हैं। इन सभी जगहों पर लाखों रुपए की वसूली हो रही है, जबकि प्राधिकरण को इसका वैधानिक हिस्सा नहीं मिल रहा। यह लापरवाही केवल एजेंसी की नहीं, बल्कि प्राधिकरण के संबंधित अधिकारियों की चुप्पी पर भी सवाल उठाती है। शहर में खुलेआम हो रहे इस उल्लंघन से दो अहम सवाल खड़े होते हैं—क्या प्राधिकरण को इस अनियमितता की जानकारी नहीं है, या फिर एजेंसी और अधिकारियों के बीच कोई मिलीभगत का खेल चल रहा है?
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की यह परियोजना शहर में स्वच्छता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई थी, परंतु अब इसका दुरुपयोग निजी मुनाफे के लिए किया जा रहा है। एलईडी एडवर्टाइजमेंट के जरिये वसूला जा रहा शुल्क लाखों करोड़ो में पहुंच चुका है, जबकि सरकारी हिस्सेदारी न के बराबर है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों के द्वारा इस पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए और दोषी एजेंसी के साथ-साथ संबंधित अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जाए।











