
लोकसभा में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् की रचना के 150 साल होने पर 10 घंटे की चर्चा हो रही है. सबसे पहले पीएम मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोल रहे हैं. उन्होंने पहले पीएम मोदी ने वंदे मातरम् गीत के इतिहास पर बात की और पूर्व की कांग्रेस सरकार और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेके का आरोप लगाया. नरेंद्र मोदी ने बताया कि मोहम्मद अली जिन्ना ने लखनऊ से 15 अक्टूबर 1936 को वंदे मातरम् के खिलाफ नारा बुलंद किया था. तब कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा. बजाय इसके कि नेहरू मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों को करारा जबाब देते, उसकी निंदा करते, लेकिन उल्टा हुआ. उन्होंने वंदे मातरम् की ही पड़ताल शुरू कर दी.
पीएम मोदी ने आगे कहा कि ‘नेहरू ने 5 दिन बाद नेताजी को चिट्ठी लिखी. उसमें नेहरू की तरफ से जिन्ना की भावना से सहमति जताते हुए लिखा गया कि वंदे मातरम् की आनंदमठ वाली पृष्ठभूमि से मुसलमालों को चोट पहुंच सकती है, वे लिखते हैं- ये जो बैकग्राउंड है, इससे मुस्लिम भड़केंगे.’ फिर कांग्रेस ने बयानन जारी किया कि 26 अक्टूबर को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक होगी, जिसमें वंदे मातरम् के उपयोग की समीक्षा होगी, इस प्रस्ताव के खिलाफ लोगों ने देश भर में प्रभात फेरियां निकालीं, लेकिन कांग्रेस ने वंदे मातरम् के टुकड़े कर दिए. इतिहास गवाह है कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेक दिए.’
‘कांग्रेस ने वंदे मातरम् के टुकड़े किए’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर हमला बोला और कहा कि कांग्रेस ने वंदे मातरम् के टुकड़े किए. ये उसका तुष्टीकरण की राजनीति को साधने का ये तरीका था. तुष्टीकरण की राजनीति के दबाव में कांग्रेस वंदे मातरम के बंटवारे के लिए झुकी. इसलिए कांग्रेस को एक दिन भारत के बंटवारे के लिए भी झुकना पड़ा.
दरअसल, 1937 के प्रांतीय चुनाव के बाद कांग्रेस ने ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाया, लेकिन मुस्लिम लीग और उसके नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने इसका विरोध किया था. जिन्ना का तर्क था कि यह गीत बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास ‘आनंदमठ’ से लिया गया है, जिसमें देवी दुर्गा की स्तुति शामिल है, जबकि इस्लाम में किसी देवी-देवता की पूजा स्वीकार नहीं की जाती. इस वजह से मुस्लिम लीग को लगा कि यह गीत मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है. बाद में जब कांग्रेस शासित प्रांतों में ‘वंदे मातरम्’ गाना अनिवार्य किया गया, तो जिन्ना ने 1938 में इसे सांप्रदायिक और मुसलमानों के लिए आपत्तिजनक बताते हुए स्पष्ट रूप से अपना विरोध जताया था.
पीएम मोदी ने वंदे मातरम् गीत के इतिहास पर बात की
इससे पहले पीएम मोदी ने वंदे मातरम् गीत के इतिहास पर बात की. उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् की इस यात्रा की शुरुआत बंकिमचंद्र जी ने 1875 में की थी. यह गीत ऐसे वक्त लिखा गया था, जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज हुकूमत बौखलाई हुई थी. भारत पर जुल्म हो रहे थे, लोगों को मजबूर किया जा रहा था अंग्रेजों द्वारा. उस समय अंग्रेजों के राष्ट्रीय गीत को भारत के घर–घर पहुंचाने का षड्यंत्र रचा गया था. ऐसे में बंकिमचंद्र ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया और वंदे मातरम् का जन्म हुआ.
क्या है ‘वंदे मातरम्’ का इतिहास?
देश आज ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ मना रहा है. इसे लगभग डेढ़ शताब्दी पहले 7 नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के पावन अवसर पर साहित्यकार बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने लिखा था. यह पहली बार 1882 में प्रकाशित हुआ, जिसे बाद में संगीतकार जदुनाथ भट्टाचार्य ने सुरों में ढाला. खास बात ये है कि वक्त के साथ ये गीत स्वतंत्रता आंदोलन का स्वर बनकर उभरा. एक ऐसा उद्घोष जिसने आंदोलनकारियों के बीच अद्भुत ऊर्जा और एकता पैदा की. आज़ादी के बाद 1950 में संविधान लागू होने पर, ‘वंदे मातरम्’ को भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया था. 150 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में केंद्र सरकारइस ऐतिहासिक रचना की विरासत को सम्मान देते हुए एक विशेष स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी भी किया था.













