मैडॉक फिल्म्स के हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स की नई कड़ी ‘थम्मा’ एक बार फिर उस खास जादू को दोहराने का प्रयास कर रही, जो पहले ‘स्त्री’ और ‘भेड़िया’ जैसी फिल्मों में देखने को मिला था। अगर आप इस हॉरर यूनिवर्स के फैन हैं तो ये फिल्म आपके लिए हैं। पिछले सभी भागों को देखने वाले लोग इसकी हर कड़ी से जुड़ पाएंगे। ‘थामा’ को लेकर काफी बज थी और दर्शकों को उम्मीद थी कि फिल्म में वहीं जादू दिखेगा, जो ‘स्त्री’ और ‘स्त्री 2’ में देखने को मिला। हालांकि इस बार फिल्म अपने विषय और प्रस्तुति में कुछ हद तक ही सफल हो पाई है। मैडॉक हॉररवर्स के शानदार ट्रैक में इस बार क्या अलग था, क्या खास था और क्या इंपैक्ट नहीं डाल सका, ये जानने के लिए नीचे स्क्रोल करें।

कैसी है कहानी?
फिल्म की शुरुआत 323 ईसा पूर्व से होती है जब हमें एक पुश्तैनी यक्ष (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) से मिलवाया जाता है, जो कई सालों से कैद है। इसके बाद आलोक गोयल (आयुष्मान खुराना) का परिचय होता है, जो पेशे से पत्रकार हैं। ‘गैर-मीम’ योग्य खबरों की तलाश में वह एक जंगल में पहुंच जाता है, जहां उसकी मुलाकात ताड़का (रश्मिका मंदाना) से होती है, जो एक नियम-पालक ‘बेताल’ है। समय के साथ वह उससे प्यार करने लगती है, जबकि वह उसकी असलियत से अनजान होता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है पूरा भार आयुष्मान खुराना के कंधों पर आ जाता है।
‘थम्मा’ की कहानी एक रहस्यमय जंगल में सेट है, जहां प्राचीन दंतकथाएं, भूली-बिसरी कहानियां और रक्षकों का एक जादुई संसार है। इस बार फिल्म का फोकस पिशाचों (वैम्पायर) पर है, जिन्हें लेकर निर्देशक आदित्य सरपोतदार ने हास्य और हॉरर का मिश्रण बनाने की कोशिश की है। कहानी एक सनकी पत्रकार (आयुष्मान खुराना) और एक रहस्यमय महिला ताड़का (रश्मिका मंदाना) के इर्द-गिर्द घूमती है। पत्रकार शुरुआत में बाहरी नजर आता है, धीरे-धीरे इस जादुई और खतरनाक दुनिया का हिस्सा बन जाता है। शुरुआत काफी धमाकेदार तरीके से होती है। पहला भाग आपको हंसाने के साथ डराता भी है और इसी के साथ दूसरे भाग से उम्मीदें काफी बढ़ जाती हैं। वैसा पहला हिस्सा जितनी लंबी उड़ान भरता है, दूसरा उतना सैटिस्फाइंग नहीं हैं। भारी उम्मीदों के बाद भी हालांकि कहानी में नए विषयों को उठाने की कोशिश की गई है, लेकिन पटकथा और संवाद इतने प्रभावशाली नहीं हैं कि वे दर्शकों को पूरी तरह बांध सकें।
अभिनय
आयुष्मान खुराना का प्रदर्शन इस फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण है। उनकी टाइमिंग और डायलॉग डिलीवरी से यह साफ झलकता है कि वे इस किरदार में पूरी तरह डूबे हुए हैं। उनकी हल्की-फुल्की कॉमिक भूमिका से लेकर गंभीर भावों तक का ट्रांजिशन शानदार है। रश्मिका मंदाना का अभिनय थोड़ा कमजोर है, लेकन वह फिल्म में नाटकीयता के बजाय सादगी से अपना किरदार निभाती हैं, जो कई बार दर्शकों के लिए ताजगी लेकर आता है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने सीमित लेकिन प्रभावशाली भूमिका निभाई है, वहीं परेश रावल ने हास्य के तत्वों को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। दोनों अपने छोटे रोल में भी दमदार हैं और उन छड़ों में सारी लाइमलाइट चुरा रहे हैं। गीता अग्रवाल शर्मा का बार-बार पीड़ित पात्रों में नजर आना उनकी छवि को मजबूत करता है, लेकिन यहां उनका किरदार भी ज्यादा कुछ नया नहीं जोड़ पाता। मलाइका अरोड़ा और नोरा फतेही के आइटम सॉन्ग्स फिल्म के लय को तोड़ने वाले बने हैं।
तकनीकी पक्ष
फिल्म के VFX और विजुअल इफेक्ट्स इस बार भी काफी मजबूत हैं। आलोक और भेड़िया के बीच की लड़ाई का सीन इस बात का उदाहरण है कि मैडॉक फिल्म्स इस क्षेत्र में कितनी मेहनत कर रहा है। जंगल का वातावरण, साउंड डिजाइन और लाइटिंग काफी प्रभावशाली हैं और थ्रिल को बेहतर बनाते हैं, लेकिन फिल्म की लंबाई और बार-बार दोहराए जाने वाले चुटकुले इन तकनीकी खूबियों पर भारी पड़ते हैं। क्लिफहैंगर्स की भरमार होने के बावजूद, वे दर्शकों को जुड़ाव में मदद नहीं कर पाते क्योंकि कहानी का प्रवाह कमजोर है।
निर्देशन और लेखन
‘थम्मा’ की सबसे बड़ी कमजोरी इसकी पटकथा है। फिल्म में कई ऐसे पल हैं जहां कहानी कहीं उलझ जाती है, वहीं कुछ दृश्य ज्यादा लंबे और दोहराव वाले लगते हैं। वैम्पायर से जुड़े चुटकुले, जो शुरुआत में मनोरंजक लगते हैं, लेकिन दूसरे भाग में ये कमजोर पड़ते हैं। फिल्म में कई कैमियो और इमोशनल लिंक डाले गए हैं, जो यूनिवर्स को जोड़ने के प्रयास लगते हैं, लेकिन वे कहीं-कहीं दर्शकों के लिए भ्रमित करने वाले भी हो जाते हैं। वैम्पायर से जुड़ी कॉमिक टाइमिंग और चुटकुले एक समय बाद थकान और दोहराव का अहसास दिलाते हैं। मगर एक्टर्स की प्रभावी एक्टिंग आपको बोर होने से बार-बार बचाती है और कुर्सी से चिपके रहने के लिए मजबूर करती है। साथ ही आइटम सॉन्ग्स के बिना भी कहानी को आगे बढ़ाया जा सकता था। इस सब से इतर मलाइका अरोड़ा और नोरा फतेही के डांस नंबर बेजोड़ हैं और ये कहना गलत नहीं होगा कि इनका कोई तोड़ नहीं है।
मैडॉक यूनिवर्स की कड़ी
‘थम्मा’ सीधा तौर पर ‘स्त्री 2’ और ‘भेड़िया’ से जुड़ी है और फिल्म के अंत में कई हिंट्स ऐसे हैं जो दर्शकों को अगली कड़ियों के लिए उत्साहित करते हैं। ‘सर कटा’ का कैमियो एक चेतावनी की तरह काम करता है कि आने वाली कहानियां और भी डार्क और जटिल होंगी। फिल्म में नोरा फतेही के किरदार के जरिए भी इस यूनिवर्स की गहराई को दिखाने की कोशिश की गई है।
क्या देखने लायक है ये फिल्म
‘थम्मा’ हॉरर-कॉमेडी के जॉनर में एक दिलचस्प कोशिश हो और अगर आप इस युनिवर्स और आयुषमान खुराना के फैन हैं तो इसे आप एक बार जरूर देख सकते हैं, लेकिन यह मैडॉक फिल्म्स के पिछले हिट्स जैसे ‘स्त्री’ और ‘भेड़िया’ के समकक्ष नहीं ठहर पाती। फिल्म में शानदार अभिनय, बढ़िया VFX और यूनिवर्स के साथ जुड़ाव के बावजूद, इसकी लंबाई, पटकथा की कमजोरियां और कुछ बार-बार दोहराए जाने वाले हास्य इसे कमजोर कर देते हैं। आइटम सॉन्ग्स का भी फिल्म की कहानी में ज्यादा योगदान नहीं है। अगर आप मैडॉक हॉररवर्स के फैन हैं और यूनिवर्स की कहानी में रुचि रखते हैं तो यह फिल्म देखने लायक हो सकती है, लेकिन एक सामान्य दर्शक के लिए यह सिर्फ औसत मनोरंजन प्रदान करती है। हम इसे 3 स्टार दे रहे हैं।