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विभिन्न पक्षों से चर्चा के बाद स्थानांतरित की गईं संसद परिसर की प्रतिमाएं, गांधी-आंबेडकर की मूर्ति को लेकर विपक्ष नाराज

Sanchar Now by Sanchar Now
17/06/2024
in राष्ट्रीय
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विभिन्न पक्षों से चर्चा के बाद स्थानांतरित की गईं संसद परिसर की प्रतिमाएं, गांधी-आंबेडकर की मूर्ति को लेकर विपक्ष नाराज

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को संसद भवन परिसर में ‘प्रेरणा स्थल’ का उद्घाटन किया जिसमें देश के महान नेताओं की मूर्तियों को नई जगह पर स्थापित किया गया है. विपक्ष ने इस पर आपत्ति जताई है और इसे ‘लोकतंत्र की मूल भावना का उल्लंघन’ बताया है.

प्रेरणा स्थल के उद्घाटन के मौके पर उपराष्ट्रपति के साथ 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला, केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह और केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव, अर्जुन राम मेघवाल और एल मुरुगन ने भी महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी.

एक ही जगह पर स्थापित की गईं मूर्तियां

संसद भवन परिसर के अंदर देश के महान नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियां स्थापित हैं, जिन्होंने भारत के इतिहास, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया. ये मूर्तियां परिसर में अलग-अलग जगहों पर स्थित थीं, जिससे यहां आने वाले लोगों के लिए इन्हें ठीक से देखना मुश्किल हो गया था.

इन मूर्तियों को संसद भवन परिसर के अंदर एक ही स्थान पर स्थापित करने के उद्देश्य से प्रेरणा स्थल का निर्माण किया गया है ताकि संसद भवन परिसर में आने वाले गणमान्य व्यक्ति और अन्य लोग इन मूर्तियों को एक ही जगह पर सुविधाजनक रूप से देख सकें और श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें.

कांग्रेस ने जताई आपत्ति

विपक्ष ने इस नए निर्माण पर आपत्ति जताई है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ट्वीट कर कहा, ‘संसद भवन परिसर में महात्मा गांधी और डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर समेत कई महान नेताओं की मूर्तियों को उनके प्रमुख स्थानों से हटाकर एक अलग कोने में स्थापित कर दिया गया है. बिना किसी सलाह के मनमाने ढंग से इन मूर्तियों को हटाना हमारे लोकतंत्र की मूल भावना का उल्लंघन है.’

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खड़गे ने लिखा, ‘महात्मा गांधी और डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की प्रतिमाएं और अन्य प्रमुख नेताओं की प्रतिमाएं विचार-विमर्श के बाद उचित स्थानों पर स्थापित की गई थीं. प्रत्येक प्रतिमा और संसद भवन परिसर में उसका स्थान खास महत्व रखता है. पुराने संसद भवन के ठीक सामने स्थित ध्यान मुद्रा में महात्मा गांधी की प्रतिमा भारत की लोकतांत्रिक राजनीति के लिए अत्यधिक महत्व रखती है. सदस्यों ने अपने भीतर महात्मा की भावना को आत्मसात करते हुए महात्मा गांधी की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित की. यह वह स्थान है जहां सदस्य अक्सर शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शन करते थे.’

‘मनमाने ढंग से सब खत्म कर दिया गया’

उन्होंने लिखा, ‘डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की प्रतिमा भी एक सुविधाजनक स्थान पर रखी गई थी, जो यह शक्तिशाली संदेश देती है कि बाबासाहेब सांसदों को भारत के संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धांतों को दृढ़ता से बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. संयोग से, 60 के दशक के मध्य में अपने छात्र जीवन के दौरान, मैं संसद भवन के परिसर में बाबासाहेब की प्रतिमा स्थापित करने की मांग में सबसे आगे था.’

खड़गे ने लिखा, ‘इस तरह के ठोस प्रयासों के परिणामस्वरूप आखिरकार डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की प्रतिमा उसी जगह पर स्थापित की गई, जहां अब तक वह स्थापित थी. यह सब अब मनमाने ढंग से खत्म कर दिया गया है.’

‘ऐसे फैसले संसद के नियमों के खिलाफ’

उन्होंने लिखा, ‘संसद भवन परिसर में राष्ट्रीय नेताओं और सांसदों की तस्वीरों और मूर्तियों को स्थापित करने के लिए एक समिति है, जिसे ‘संसद भवन परिसर में राष्ट्रीय नेताओं और सांसदों की तस्वीरों और मूर्तियों की स्थापना पर समिति’ (Committee on the Installation of Portraits and Statues of National Leaders and Parliamentarians in the Parliament House Complex) कहा जाता है, जिसमें दोनों सदन के सांसद शामिल होते हैं. हालांकि, 2019 के बाद से समिति का पुनर्गठन नहीं किया गया है.’

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जयराम रमेश ने भी किया ट्वीट

खड़गे ने कहा कि उचित चर्चा और विचार-विमर्श के बिना किए गए ऐसे फैसले हमारी संसद के नियमों और परंपराओं के खिलाफ हैं. वहीं कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने भी अपने ट्वीट लिखा, ‘लोकसभा की वेबसाइट के अनुसार, चित्रों और मूर्तियों से संबंधित संसदीय समिति की आखिरी बैठक 18 दिसंबर, 2018 को हुई थी. 17वीं लोकसभा (2019-2024) के दौरान इसका पुनर्गठन भी नहीं किया गया. यह पहली बार उपाध्यक्ष के संवैधानिक पद के बिना ही काम कर रही थी.’

उन्होंने लिखा, ‘आज, संसद परिसर में बड़े पैमाने पर मूर्तियों को स्थानांतरित किया जा रहा है. यह स्पष्ट रूप से सत्तारूढ़ शासन द्वारा लिया गया एकतरफा निर्णय है. इसका एकमात्र उद्देश्य महात्मा गांधी और डॉ. अंबेडकर की मूर्तियों को संसद की उस जगह के पास से दूर हटाना है जहां बैठक होती है. दरअसल ये मूर्तियां ही शांतिपूर्ण, वैध और लोकतांत्रिक ढंग से विरोध दर्ज करने के पारंपरिक स्थल थे. ऐसा करके महात्मा गांधी की प्रतिमा को केवल एक बार नहीं बल्कि दो बार विस्थापित किया गया है.’

‘किसी प्रतिमा को हटाया नहीं गया बस पुनर्स्थापित किया गया’

कांग्रेस की आपत्ति का जवाब देते हुए ओम बिरला ने कहा कि किसी भी प्रतिमा को हटाया नहीं गया है, बल्कि सभी को ससम्मान प्रेरणा स्थल पर पुनर्स्थापित किया गया है. ओम बिरला ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘देश के महान नेताओं, क्रांतिकारियों और समाज में धार्मिक-आध्यात्मिक पुनर्जागरण के अग्रदूत इन विभूतियों की यह प्रतिमाएं पूर्व में संसद भवन परिसर में विभिन्न स्थानों पर स्थापित थीं. किसी भी प्रतिमा को हटाया नहीं गया है, बल्कि सभी को ससम्मान प्रेरणा स्थल पर पुनर्स्थापित किया गया है.’

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उन्होंने लिखा, ‘प्रेरणास्थल के माध्यम से संसद भवन आने वाले आगंतुक अब एक ही स्थान पर देश की महान विभूतियों की प्रतिमाओं को नमन कर उनके जीवन, आदर्शों तथा देश के प्रति उनके योगदान से प्रेरणा ले सकेंगे.’

क्यूआर कोड से श्रद्धांजलि देने की सुविधा

एक प्रेस रिलीज में कहा गया कि इन महान भारतीयों की जीवन गाथाओं और संदेशों को नई तकनीक के माध्यम से विजिटर्स के लिए उपलब्ध कराने के लिए एक एक्शन प्लान भी बनाया गया है ताकि लोग उनसे प्रेरणा ले सकें.

गौरतलब है कि इससे पहले भी नए संसद भवन के निर्माण कार्य के दौरान महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू और चौधरी देवीलाल की मूर्तियों को परिसर में अन्य जगहों पर स्थानांतरित कर दिया गया था. प्रेरणा स्थल पर मूर्तियों के चारों ओर लॉन और उद्यान बनाए गए हैं. यहां आने वाले लोग क्यूआर कोड के जरिए महान नेताओं श्रद्धांजलि दे सकते हैं.

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