दो रोहिंग्या शरणार्थियों ने दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की है। उन्होंने सोशल नेटवर्किंग प्लैटफॉर्म फेसबुक को यह निर्देश देने की मांग की है कि समुदाय के खिलाफ नफरत भरे और भड़काऊ सामग्री पर रोक लगाई जाए। कोर्ट से मांग की है कि फेसबुक को उस एल्गोरिदम पर रोक लगाने को कहा जाए जिसके तहत वायरल कंटेंट को रैंक किया जाता है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि इससे अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति हिंसा को और हेट स्पीच को प्रोत्साहन मिलता है।
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक याचिका पर इस महीने के अंत में सुनवाई हो सकती है। याचिकाकर्ता मोहम्मत हमीम और कौसर मोहम्मद हैं। वे म्यांमार से भागकर क्रमश: जुलाई 2018 और मार्च 2022 में भारत आए। वकील कवलप्रीत कौर के माध्यम से याचिका दायर करके उन्होंने आरोप लगाया कि फेसबुक पर भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों के खिलाफ गलत सूचनाएं, हानिकारक सामग्री प्रसारित की जा रही है और सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म इनके खिलाफ ऐक्शन नहीं ले रहा है।
याचिका में कहा गया है कि फेसबुक का एल्गोरिदम इस तरह के कॉटेंट को बढ़ावा देता है। दलील दी गई कि म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय से अमानवीय व्यवहार के लिए फेसबुक का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया था। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 2024 के आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं और ऐसे में इसका इस्तेमाल रोहिंग्या के खिलाफ सामग्री परोसने के लिए किया जा सकता है जिससे समुदाय के खिलाफ हिंसा हो सकती है।
याचिका में कहा गया है, ‘भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों की मौजूदगी अत्यधिक राजनीतिक मुद्दा है। फेसबुक पर उनके खिलाफ हानिकारक सामग्री साझा की जाती है। अक्सर उन्हें भारत के खिलाफ खतरा, आतंकवादी, घुसपैठिया और भारत आए रोहिंग्याओं की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है।’ 2019 की एक स्टडी का हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया कि फेसबुक पर 6 फीसदी इस्लामोफोबिया पोस्ट रोहिंग्या विरोधी हैं, जो भारत में मुस्लिम आबादी के महज 0.02 फीसदी हैं।