ट्रांसफर-पोस्टिंग के नाम पर लाखों रुपये की लेन-देन की वार्ता में फंसे आईपीएस हिमांशु कुमार को बड़ी राहत मिली है। उनके खिलाफ चल रही विभागीय जांच को समाप्त कर दिया गया है, जबकि विजिलेंस ने भी जांच के बाद इस मामले में एफआर यानि अंतिम रिपोर्ट लगा दी है। इसमें हिमांशु कुमार पर लगे आरोपों की पुष्टि नहीं होने तथा कोई पुख्ता साक्ष्य न होने की बात कही गई है।
विजिलेंस के जांच अधिकारी ने एफआर में कहा है कि जिस फोन चैट के आधार पर आईपीएस पर आरोप लगाए गये थे। उस चैट को फोरेंसिक जांच में लैब की ओर से सत्यापित नहीं किया गया। इसके अलावा जांच में फोन की बरादमगी को लेकर भी सवाल उठाते हुए पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाए गए थे। इसमें कहा गया था कि जिस कथित पत्रकार के फोन की बात कही गई थी, उसकी गिरफ्तारी 23 अगस्त की दर्शायी गई थी, जबकि फोन 26 अगस्त को बरामद हुआ था। इस मामले में जांच समाप्त हो जाने के बाद अब हिमांशु कुमार को राहत मिली है। उनके डीआईजी के पद पर प्रमोशन का भी रास्ता साफ हो गया है।
छह आईपीएस अफसरों पर गिरी थी गाज
एसएसपी गौतमबुद्वनगर की गोपनीय रिपोर्ट वर्ष 2020 के पहले दिन वायरल हो गई थी। इसकी गाज छह आईपीएस अधिकारियों पर गिरी थी। वर्ष 2020 में नए साल के पहले दिन तत्कालीन एसएसपी वैभव कृष्ण ने एक प्रेस वार्ता में कहा उन्होंने कुछ बड़े अधिकारियों और अन्य लोगों के खिलाफ एक गोपनीय रिपोर्ट शासन को भेजी थी। इस रिपोर्ट के चलते ही उनके खिलाफ साजिश रची गई है।
न्यायालय ने पूर्व में खारिज कर दी थी एफआर
इस मामले में पूर्व में एक बार न्यायालय पुलिस की एफआर को खारिज कर चुका है। शासन से हरी झंडी मिलने के बाद विजिलेंस द्वारा अप्रैल 2023 में अंतिम रिपोर्ट मेरठ स्थित एंटी करप्शन कोर्ट में दाखिल की गई थी। इस पर एंटी करप्शन (तृतीय) कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। अंतिम रिपोर्ट को लेकर हुई सुनवाई के बाद न्यायाधीश ने खारिज कर दिया है और मामले में पुनर्विवेचना के निर्देश विजिलेंस को दिए हैं। टिप्पणी की गई है कि प्रकरण की जांच पुलिस अधीक्षक रैंक से ऊपर के अधिकारी से कराई जाए । इस आदेश की प्रति न्यायालय की ओर से निदेशक उत्तर प्रदेश सर्तकता अधिष्ठान को भी भेजी गई थी। दोबारा से जांच के बाद अब अक्तूबर माह में विजिलेंस द्वारा कोर्ट में एफआर दी गई थी।