भारतीय क्रिकेट में ऐसा पहली बार हो रहा है जब टीम इंडिया तीन मैचों की सीरीज के आखिरी मैच में उस सोच के साथ जा रही है जहां उन्हें जीत से ज़्यादा हार से बचने की परवाह है. कभी भी टीम इंडिया का किसी टेस्ट सीरीज में सूपड़ा साफ नहीं हुआ है. आखिरी बार सदी की शुरुआत में दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ वो 2-0 से दो मैचों की सीरीज भले ही हार गए थे लेकिन 3 या 4 या फिर मैचों की सीरीज में कभी भी वो हर मैच नहीं हारे हैं. भारत और न्यूजीलैंड के बीच तीसरा टेस्ट एक नवंबर से खेला जाना है.
सवाल यह है कि न्यूजीलैंड के ख़िलाफ इस आकस्मिक हार ने भारतीय क्रिकेट से जुड़े हर किसी शख्स को भौंचक्का कर दिया है. नंबबर से शुरू होने वाले ऑस्ट्रेलिया दौरे से पहले कीवी टीम के ख़िलाफ सीरीज जीत को महज औपचारिकता और एक अहम सीरीज से पहले वार्म-अप सीरीज के तौर पर देखा जा रहा था. ऐसा मान लिया गया था कि 3 मैच जीतकर वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने की राह को और बेहतर कर लिया जाएगा. लेकिन, सिर्फ दो हफ्ते के भीतर तख्ता-पलट हो चुका है और हर समीकरण उलट-पुलट से होते दिख रहे हैं.
रोहित-कोहली, जडेजा-अश्विन की विदाई सीरीज…
ऐसा तय माना जा रहा था कि रोहित शर्मा, विराट कोहली, रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा के लिए अगले साल यानि 2025 में पहले वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप का फाइनल और उसके बाद 5 मैचों की टेस्ट सीरीज मेजबान इंग्लैंड के ख़िलाफ उनके लिए विदाई सीरीज भी बन सकती थी. अगर राजनीतिक हल्कों में एक हफ्ते को लंबा वक्त माना जाता है तो भारतीय क्रिकेट में पिछले 2 हफ्तों को बहुत ही बड़ा समय माना जा सकता है. भारत की अगली घरेलू सीरीज 2025 अक्टूबर में है और ये कहना शायद अतिशंयोक्ति नहीं है कि मुंबई टेस्ट में घरेलू जमीं पर आप आखिरी बार रोहित-कोहली-अश्विन-जडेजा की बेमिसाल चौकड़ी को एक साथ देखेंगे. ये वही चौकड़ी है जिसने पिछले 12 साल में 18 सीरीज तक भारतीय किले को अभेद्य रखा. इस दौर में दो सबसे कामयाब बल्लेबाज और दो सबसे कामयाब गेंदबाज यही चार यार थे.
अब आगे की राह कैसी होगी?
यह एक ऐसा सवाल है जो मुख्य चयनकर्ता अजीत अगरकर और नए हेड कोच गौतम गंभीर को अब लगातार परेशान करेगा. टेस्ट क्रिकेट में शानदार कामयाबी हासिल करने वाली इस चौकड़ी के स्वर्णिम दिन शायद अतीत का हिस्सा हो चुके हैं. निश्चित तौर पर ये खिलाड़ी अगले कुछ सालों तक एक सीरीज या दो सीरीज या हर दो या तीन टेस्ट मैचों के बाद लाजवाब खेल दिखाने की काबिलियत रखते हैं लेकिन ये खुद सबसे पहले मानेंगे कि भविष्य की राह अब इनके कंधों पर तैयार नहीं की जा सकती है. स्पिन के मोर्चे पर अश्विन-जडेजा की जोड़ी ने घर पर ना सिर्फ गेंद के जरिये अनिल कुबंले-हरभजन सिंह की महान जोड़ी को शालीनतापूर्वक पछाड़ा बल्कि बोनस के तौर पर बल्ले से भी ऐसा कमाल दिखाया कि भारत एक दशक से ज़्यादा समय तक अपनी जमीं पर अपराजेय रहा. कुलदीप यादव भले ही ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए चोट की वजह से उपलब्ध नहीं हैं लेकिन उनके साथ अक्षर पटेल और अब वाशिंगटन सुंदर के साथ नए दौर की स्पिन तिकड़ी के बारे में गंभीरतापूर्वक सोचा जाएगा.
बड़ा सवाल तो रोहित-कोहली का है ना?
निश्चित तौर पर बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी मौजूदा कप्तान और पूर्व कप्तान के लिए उतनी ही अहम हो गई है जितनी जून में हुई टी 20 वर्ल्ड कप की चुनौती थी. तमाम आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए चयनकर्ताओं ने इन दिग्गजों पर भरोसा जताया था और उन्होंने मायूस भी नहीं किया. क्या ये दोनों उसी तरह का सपना टेस्ट क्रिकेट में ये कंगारुओं के ख़िलाफ दोहरा पाएंगे? रोहित के लिए ना सिर्फ कप्तान के तौर ये बड़ी चुनौती है क्योंकि पिछले दो दौरों पर टीम इंडिया ने वहां जीत हासिल की है बल्कि बल्लेबाज के तौर पर खासतौर पर ओपनर के तौर पर उनको 2021 वाले इंग्लैंड दौरे वाले रोहित शर्मा को ढूंढ़ना होगा.
कप्तान रोहित पर बढ़ रहा है दबाव
2008 में अपने पहले ही ऑस्ट्रेलिया दौरे पर इयान चैपल और मार्क टेलर जैसे पूर्व कप्तानों और दिग्गजों को अपने स्ट्रोकप्ले से मंत्रमुग्ध करने वाले रोहित ने सफेद गेंद वाली लय को अपने तीन टेस्ट दौरों पर हासिल करने में संघर्ष ही किया है. सात मैचों की 14 पारियों में करीब 32 का औसत और सिर्फ 3 अर्धशतक निश्चित तौर पर ना तो रोहित की काबिलियत के साथ मेल खाता है और ना ही उनके जैसे अनुभवी खिलाड़ी की शख्सियत के साथ. ऐसे में क्या ये उम्मीद की जा सकती है कि हाल के महीनों की निराशा से उबरकर कप्तान ऑस्ट्रेलिया जमीं पर ना सिर्फ अपना पहला शतक लगाएंगे बल्कि कम से कम 500 रन के आस-पास पहुंचने की कोशिश भी करेंगे जिससे ना सिर्फ उनकी टीम को फायदा होगा बल्कि बल्लेबाज के तौर पर भी वो टेस्ट क्रिकेट में 5000 रनों के करीब पहुंचेंगे. टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहने से पहले रोहित कम से कम 5000 रन और 15 टेस्ट शतक तो हासिल करना ही चाहेंगे?
कोहली की पसंदीदा टीम है ऑस्ट्रेलिया
रोहित के साथी विराट कोहली कोहली के लिए ऑस्ट्रेलिया उनके लिए सबसे पसंदीदा जगह रही है. 4 दौरों पर कोहली का टेस्ट औसत 54 से भी बेहतर रहा है जो उनके मौजूदा करियर औसत (48) से काफी ज़्यादा है. ऑस्ट्रेलिया में अपनी पहली 5 पारियों में एक भी अर्धशतक नहीं बनाने वाले कोहली ने अगली 20 पारियों में 6 शतक और 4 अर्धशतक जमाए हैं. यानि हर दूसरी पारी में या तो शतक या फिर अर्धशतक. यहां कप्तान के तौर पर भी उन्होंने टीम इंडिया को भारतीय इतिहास की पहली टेस्ट सीरीज़ भी जिताई है. ऐसे में क्या कोहली अपने आखिरी ऑस्ट्रेलिया दौरे को ठीक वैसे ही यादगार बनाने में कामयाब हो पाएंगे? यही यक्ष प्रश्न है. पिछले 5 सालों में टेस्ट क्रिकेट में कोहली शतक के मामले में, औसत के मामले में अपने समकालीन दिग्गजों के मुकाबले काफी शांत रहे हैं और ऐसे में अगर उनकी प्रतिष्ठा को फिर से अलग मुकाम पर जाने की जरूरत है तो ये जरूरी होगा कि 5 मैचों की सीरीज में उनका बल्ला वैसे ही हल्ला बोले जैसा कि वो हर दौरे पर करते आए हैं.
कुल मिलाकर देखा जाय तो भारतीय क्रिकेट में एक बार फिर से ऑस्ट्रेलिया का दौरा भविष्य के लिहाज से काफी अहम होने वाला है. 2011-12 में सचिन तेंदुलकर-राहुल द्रविड़-वीवीएस लक्ष्मण की तिकड़ी जूझती दिखी और फिर एक के बाद एक करके तीनों दिग्गजों ने खेल को अलविदा कह दिया. 2014-15 में महेंद्र सिंह धोनी ने सीरीज हारते ही कप्तानी युवा कोहली कौ सौंप दी और आखिरी टेस्ट में खेले तक नहीं और ऋद्धिमान साहा को मौका दे दिया. लेकिन 2018-19 और 2021-22 के दौरे पर टीम इंडिया के लिए काफी यादगार रहे. क्या सुनहरी यादों का ये सिलसिला अपनी हैट्रिक 2024-25 में पूरी कर पाएगा?