लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि असाधारण मुश्किलों अथवा असाधारण उत्पीड़न का सामना कर रहे पति अथवा पत्नी विवाह के एक साल के भीतर भी तलाक का मुकदमा दाखिल कर सकते हैं।
दरअसल, हिंदू विवाह अधिनियम के तहत दंपती विवाह के एक वर्ष के पश्चात ही तलाक की मांग कर सकते हैं। इसी आधार पर परिवार न्यायालय ने एक दंपती के आपसी समझौते के आधार पर दाखिल की गई तलाक की अर्जी को खारिज कर दिया था, जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।
यह निर्णय न्यायमूर्ति विवेक चौधरी व न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की खंडपीठ ने अंबेडकरनगर निवासी पति की अपील पर पारित किया। दंपती का विवाह तीन सितंबर, 2024 को हुआ था। संबंध में अधिक खटास आ जाने के कारण दोनों ने आपसी सहमति से विवाह विच्छेद का मुकदमा अंबेडकरनगर के परिवार न्यायालय में दाखिल किया।
हालांकि विवाह के एक वर्ष के भीतर मुकदमा दाखिल होने के आधार पर परिवार न्यायालय ने मुकदमे को खारिज कर दिया। अपीलार्थी की ओर से अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने दलील दी कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी आपसी समझौते के आधार पर विवाह विच्छेद का प्रविधान करती है।
हालांकि धारा 14 यह स्पष्ट करती है कि आपसी समझौते से विवाह विच्छेद का मुकदमा विवाह के एक वर्ष के पश्चात ही लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि लेकिन, धारा 14 का ही परंतुक इस बात को स्पष्ट करता है कि याची पति अथवा पत्नी जब अपने वैवाहिक जीवन में असाधारण कठिनाई का सामना कर रहे हों अथवा असाधारण उत्पीड़न से गुजर रहे हों, ऐसी परिस्थिति में एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि को समाप्त किया जा सकता है।
न्यायालय ने भी पाया कि पहले भी दूसरे उच्च न्यायालयों ने एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि को समाप्त किए जाने के आदेश दिए हैं।