नई दिल्ली। दिल्ली दंगे से पहले भड़काऊ भाषा देने के मामले में शनिवार को कड़कड़डूमा कोर्ट ने आरोपित शरजील इमाम को जमानत देने से इनकार कर दिया। उसने वैधानिक जमानत अर्जी लगाते हुए पक्ष रखा था कि उस पर जो आरोप लगाए गए हैं, उनमें अधिकतम सजा की आधी से अधिक अवधि वह न्यायिक हिरासत में बिता चुका है। उसकी अर्जी को खारिज करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश समीर बाजपेयी के कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में तथ्य सामान्य नहीं हैं।
आरोपित पर लगे आरोपों और उसकी विघटनकारी गतिविधियों को देखते हुए राहत नहीं दी जा सकती। उसकी हिरासत को जारी रखना उचित होगा। इससे पहले भी शरजील की कई अर्जियां खारिज हो चुकी हैं।
दिल्ली दंगे से पहले वर्ष 2019 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया व जनवरी 2020 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का विरोध करते हुए भड़काऊ भाषण देने के मामले में आरोपित शरजील इमाम 28 जनवरी 2020 से न्यायिक हिरासत में है।
राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार होने तक इस आरोप को लेकर उसके खिलाफ कार्रवाई रोक दी गई थी। जबकि सांप्रदायिक शत्रुता फैलाने, राष्ट्रीय एकता के खिलाफ भाषण देने, अफवाह फैलाने व गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धारा 13 के तहत आरोप में मुकदमा चल रहा है। पिछले वर्ष शरजील ने सीआरपीसी के प्रविधान के तहत वैधानिक जमानत के लिए अर्जी दायर कर कहा था कि उसके ऊपर लगे यूएपीए के आरोपों में अधिकतम सात साल की सजा हो सकती है, जबकि वह चार वर्ष से अधिक समय न्यायिक हिरासत में बिता चुका है।
कोर्ट ने आरोपपत्र में लगाए गए आरोपों व तथ्यों पर गौर करते हुए कहा कि शरजील ने भले ही किसी को हथियार उठाने या लोगों को मारने की बात नहीं कही। लेकिन दिल्ली, अलीगढ़, आसनसोल और चकबंद में उसके द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषण से लोग लामबंद हो गए।
इसके चलते दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में दंगे भड़के। कोर्ट ने कहा कि शरजील के भाषणों से स्पष्ट है कि उसने लोगों को चक्का जाम करने और शहरों को अवरुद्ध करने के लिए उकसाया। एएमयू में दिए गए भाषण में देश के उत्तर पूर्वी हिस्से को स्थायी या अस्थायी रूप से काटने की बात कही। आसनसोल में दिए भाषण में शरजील ने एक विशेष समुदाय के सदस्यों के पुलिस, सेना, न्यायालय और संसद में नहीं होने जैसी गलत बात कही।
फॉरेंसिक जांच में यह भी साबित हो गया है कि वो आवाज शरजील की थी। उसने नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के खिलाफ आवाज उठाने के लिए वाट्सएप ग्रुप बनाया था। कोर्ट ने इसी आधार पर उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी। साथ ही कोर्ट ने कि इस आदेश में कही बात गुण-दोष की अभिव्यक्ति के समान नहीं होगी।