जालौन: उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में एक हृदयस्पर्शी और सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने वाली घटना सामने आई है. जालौन कोतवाली क्षेत्र के औरखी गांव में पारिवारिक विवाद के चलते दो दिन तक एक मृतक का शव घर में पड़ा रहा. इसके बाद मृतक की बेटी शिल्पी ने साहस और जिम्मेदारी का परिचय देते हुए अपने पिता के शव को कंधे पर उठाकर श्मशान घाट तक ले गई और चिता को मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार किया.
मामला जालौन कोतवाली क्षेत्र के औरखी गांव का है, जहां एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद पारिवारिक विवाद के कारण उनके अंतिम संस्कार में देरी हुई. मृतक के परिवार में किसी ने शव को श्मशान घाट तक ले जाने की जिम्मेदारी नहीं ली, जिसके कारण शव दो दिन तक घर में ही रखा रहा. इसकी सूचना स्थानीय पुलिस को मिली, जिसके बाद पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए शव को कब्जे में लिया और पोस्टमार्टम के लिए भेजा.
बेटी ने दिखाया साहस
पोस्टमार्टम के बाद जब शव अंतिम संस्कार के लिए तैयार किया गया, तब मृतक की बेटी शिल्पी ने समाज की परंपराओं को चुनौती देते हुए अपने पिता के शव को कंधे पर उठाया. वह शव को लेकर औरखी गांव से श्मशान घाट तक पैदल गई और वहां अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी. शिल्पी के इस साहसिक कदम ने न केवल गांव वालों को भावुक कर दिया, बल्कि यह घटना सामाजिक बदलाव का प्रतीक बन गई.
पुलिस की भूमिका
जालौन कोतवाली पुलिस ने इस मामले में संवेदनशीलता और तत्परता दिखाई. सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा. इसके बाद, पुलिस ने अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को सुचारू रूप से संपन्न कराने में सहयोग किया. कोतवाली प्रभारी ने बताया, हमें सूचना मिली थी कि पारिवारिक विवाद के कारण शव का अंतिम संस्कार नहीं हो पा रहा था. हमने तुरंत कार्रवाई की और शव को पोस्टमार्टम के बाद दाह संस्कार के लिए भेजा. शिल्पी का साहस सराहनीय है.
सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने का संदेश
शिल्पी का यह कदम समाज में गहरे बैठे लैंगिक भेदभाव को चुनौती देता है. परंपरागत रूप से अंतिम संस्कार और शव को कंधा देने का कार्य पुरुषों द्वारा किया जाता रहा है, लेकिन शिल्पी ने यह साबित कर दिखाया कि बेटियां भी अपने माता-पिता के प्रति अपनी जिम्मेदारी उतनी ही निष्ठा से निभा सकती हैं. स्थानीय लोगों ने शिल्पी के इस कदम की जमकर सराहना की और इसे एक प्रेरणादायी उदाहरण बताया.