ग्रेटर नोएडा के बहुचर्चित बिसाहाड़ा अखलाक लिंचिंग केस में अदालत ने एक अहम फैसला सुनाया है. सूरजपुर स्थित जिला अदालत ने आरोपियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे को वापस लेने से जुड़ी शासन की याचिका को खारिज कर दिया है. अदालत के इस फैसले से मामले में आरोपियों को राहत दिलाने की कोशिशों पर पूरी तरह विराम लग गया है.

यूपी सरकार की तरफ से दाखिल की गई याचिका पर आज अदालत में सुनवाई हुई थी. सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने केस वापस लेने का पक्ष रखा, लेकिन अदालत ने दलीलों को संतोषजनक नहीं माना. कोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी करते हुए कहा कि केस वापसी के लिए लगाई गई अर्जी में कोई ठोस कानूनी आधार नहीं है.
अदालत ने अभियोजन की याचिका को आधारहीन और महत्वहीन मानते हुए खारिज कर दिया. इसके साथ ही यह भी साफ कर दिया कि इस मामले में आरोपियों के खिलाफ चल रही न्यायिक प्रक्रिया जारी रहेगी और मुकदमे की सुनवाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
गौरतलब है कि बिसाहाड़ा अखलाक हत्याकांड देशभर में लंबे समय तक सुर्खियों में रहा था. इस मामले को लेकर सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी काफी बहस हुई थी. लंबे समय से चल रही कानूनी प्रक्रिया के बीच सरकार द्वारा केस वापस लेने की कोशिश को अदालत ने अस्वीकार कर दिया है.
अखलाक की हत्या का क्या है पूरा मामला?
28 सितंबर 2015 की रात करीब 10 बजे उत्तर प्रदेश के दादरी के पास बिसाहड़ा गांव में मोहम्मद अखलाक के घर के बाहर ग्रामीणों की भीड़ जमा हो गई थी. आरोप लगाया गया कि गांव में कुछ दिन पहले गाय का बछड़ा गायब हुआ था और अखलाक के परिवार ने उसे काटकर उसका मांस खाया है. इसी आरोप को लेकर भीड़ ने हंगामा किया, जिसके बाद स्थिति तेजी से तनावपूर्ण हो गई. इसी आरोप के साथ भीड़ ने पीट-पीट कर अखलाक की हत्या कर दी.
अखलाक लिंचिंग केस में कौन-कौन आरोपी?
अखलाक की हत्या मामले में कुल 19 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें स्थानीय बीजेपी नेता के बेटे विशाल राणा और उसके सगा शिवम जैसे मुख्य आरोपी शामिल थे. पुलिस ने उन्हें हत्या, दंगा और धमकी समेत कई आरोपों के तहत नामजद किया था. अखलाक की मौत के मामले में एफआईआर में यह सभी आरोपी थे और कोर्ट में केस की लगातार सुनवाई चल रही थी. इस साल अक्टूबर 2025 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इन सभी आरोपियों के खिलाफ आरोप वापस लेने के लिए ट्रायल कोर्ट में आवेदन दायर किया था, जो 18 दिसंबर को सुनवाई के लिए तय किया गया.













