मेरठ के सिसौली थाना क्षेत्र के हसनपुर कला गांव निवासी सुनील कुमार पुत्र गोविंद बीती रात किसी अज्ञात वाहन की टक्कर से गंभीर रूप से घायल हो गया। हादसे की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और घायल को मेरठ मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी में भर्ती कराया।
घटना की सूचना मिलने पर ग्राम प्रधान जग्गी व अन्य परिजन रात में ही मेडिकल पहुंचे, लेकिन उनका आरोप है कि वहां न कोई डॉक्टर मिला और न ही किसी स्टाफ ने इलाज शुरू किया।विज्ञापन
परिजनों का कहना है कि इमरजेंसी स्टाफ कुर्सियों पर सोता रहा और बार-बार कहने पर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया। स्थिति तब और गंभीर हो गई जब एक कर्मचारी ने एक्स-रे के बिना ही सुनील का पैर काटने की बात कही और दस्तखत कराने की कोशिश की, लेकिन परिजनों ने इसका विरोध किया।
इसके बाद घायल को ‘लावारिस’ बताकर भर्ती किया गया, लेकिन समय रहते इलाज न मिलने के कारण कुछ देर में ही उसकी मौत हो गई।
सुबह होते ही ग्रामीणों के साथ माछरा के प्रधान यतेन्द्र शर्मा और ग्राम प्रधान जग्गी मेडिकल पहुंचे और प्राचार्य डॉ. ए.सी. गुप्ता से मुलाकात की। ग्रामीणों ने घटना को लेकर कड़ी नाराजगी जताई और मांग की कि लापरवाह स्टाफ को तत्काल सस्पेंड किया जाए।
प्राचार्य ने मामले की जांच का आश्वासन दिया और कहा कि दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी। यह घटना सवाल खड़े करती है कि क्या मेडिकल की आपातकालीन सेवाएं वास्तव में चौकस हैं? एक घायल युवक की जान ऐसे ही कैसे चली गई?
चिकित्सक और कर्मचारी पर हुई बड़ी कार्रवाई
घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग हरकत में आया और दो जूनियर डॉक्टरों को सस्पेंड कर दिया गया है। साथ ही तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन कर दिया गया है, जो लापरवाही के पूरे मामले की जांच कर रिपोर्ट सौंपेगी। फिलहाल अस्पताल की व्यवस्था और जवाबदेही पर फिर से सवाल खड़े हो गए हैं।